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नंदी
के नगर, उद्यान, वनखण्ड, चैत्य, समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, ऐहलौकिक-पारलौकिक ऋद्धिविशेष, नरक गमन, संसार के भव प्रपंच, दुःख परम्पराओं, दुष्कुल में पुनरागमन और दुर्लभ बोधित्व का आख्यान किया गया है। वह दुःखविपाक
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वे सुखविपाक क्या हैं। सुख विपाक में सुख विपाक वाले मनुष्यों के नगर, उद्यान, वनखण्ड, चैत्य, समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, ऐहलौकिक-पारलौकिक ऋद्धि विशेष, भोग परित्याग, प्रव्रज्या, पर्याय, श्रुतपरिग्रह, तपउपधान, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, प्रायोपगमन, देवलोकगमन, सुख परम्पराओं, सुकुल में पुनरागमन, पुनर्बोधिलाभ और अन्तक्रिया का आख्यान किया गया है । वह सुखविपाक है।
उज्जाणाई, वणसंडाइं, चेइयाई, राणि, उद्यानानि, वनषण्डानि, समोसरणाई, रायाणो, अम्मा- चैत्यानि, समवसरणानि, राजानः, पियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, मातापितरः, धर्माचार्याः, धर्मकथाः, इहलोइय-परलोइया रिद्धिविसेसा, ऐहलौकिक-पारलौकिकाः ऋद्धिनिरयगमणाई, संसारभवपवंचा, विशेषाः, निरयगमनानि, संसारभवदुहपरंपराओ, दुक्कुलपच्चायाईयो, प्रपञ्चाः, दुःखपरम्पराः, दुष्कुलदुल्लहबोहियत्तं आघविज्जइ । प्रत्यायातीः, दुर्लभबोधिकत्वम् सेत्तं दुहविवागा।
आख्यायन्ते । ते एते दुःखविपाकाः । से कि तं सुहविवागा ? सुह- अथ के ते सुखविपाकाः ? सुखविवागेसु णं सुहविवागाणं नगराइं, विपाकेषु सुखविपाकानां नगराणि, उज्जाणाई, वणसंडाइं, चेइयाई, उद्यानानि, वनषण्डानि, चैत्यानि, समोसरणाई, रायाणो, अम्मा- समवसरणानि, राजानः, मातापितरः, पियरो, धम्मकहाओ, इहलोइय- धर्माचार्याः, धर्मकथाः, ऐहलौकिकपरलोइया इढिविसेसा, भोग- पारलौकिकाः ऋद्धिविशेषाः, भोगपरिच्चागा, पव्वज्जाओ, परि- परित्यागाः, प्रव्रज्याः, पर्यायाः, श्रुतआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहा- परिग्रहाः, तपउपधानानि, पंलेखनाः, णाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खा- भक्तप्रत्याख्यानानि, प्रायोपगमनानि, णाई, पाओवगमणाई, देवलोगग- देवलोकगमनानि, सुखपरम्पराः, मणाई, सुहपरंपराओ, सुकुल- सुकुलप्रत्यायातीः, पुनर्बोधिलाभाः, पच्चायाईओ, पुणबोहिलाभा, अन्तक्रियाः च आख्यायन्ते। ते एते अंतकिरियाओ य आघविज्जंति। सुखविपाकाः । . सेत्तं सुहविवागा।
विवागसूयस्स णं परित्ता विपाकश्रतस्य परीताः वाचनाः, वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि, संख्येयाः संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, वेष्टाः, संख्येयाः श्लोकाः, संख्येयाः संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखे- नियुक्तयः, संख्येयाः संग्रहण्यः, संख्येयाः ज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ प्रतिपत्तयः । पडिबत्तीओ।
से णं अंगट्टयाए इक्कारसमे तद अङ्गार्थतया एकादशमम् अंगे, दो सुयक्खंधा, वीसं अज्झ- अङ्गम्, द्वौ श्रुतस्कन्धौ, विशतिः यणा, वीसं उद्देसणकाला, वीसं अध्ययनानि, विशतिः उद्देशनसमुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पय- कालाः, विशतिः समुद्देशनकालाः सहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा संख्येयानि पदसहस्राणि पदाग्रेण, अक्खरा, अणंता गमा, अणंता संख्येयानि अक्षराणि, अनन्ताः गमाः, पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता
अनन्ताः पर्यवाः, परीताः प्रसाः, थावरा सासय-कड-निबद्ध-निका
अनन्ताः स्थावराः, शाश्वत-कृतइया जिणपण्णत्ता भावा आघ
निबद्ध-निकाचिताः जिनप्रज्ञप्ताः भावाः विज्जति पण्णविज्जति परू
आख्यायन्ते प्रज्ञाप्यन्ते प्ररूप्यन्ते विज्जति दंसिर्जति निदंसिज्जंति
दय॑न्ते निदर्श्यन्ते उपदर्श्यन्ते । उवदंसिज्जति ।
से एवं आया, एवं नाया, एवं स एवमात्मा, एवं ज्ञाता, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परू- विज्ञाता, एवं चरण-करण-प्ररूपणा
विपाक में परिमित वाचनाएं, संख्येय अनुयोगद्वार, संख्येय वेढा (छंद-विशेष), संख्येय श्लोक, संख्येय नियुक्तियां, संख्येय संग्रहणियां और संख्येय प्रतिपत्तियां हैं।
वह अंगों में ग्यारहवां अंग है। उसके दो श्रुतस्कन्ध, बीस अध्ययन, बीस उद्देशन-काल, बीस समुद्देशन-काल, पद परिमाण की दृष्टि से संख्येय हजार पद, संख्येय अक्षर, अनन्त गम और अनन्त पर्यव हैं। उसमें परिमित बस अनन्त स्थावर, शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाचित जिनप्रज्ञप्त भावों का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया गया है।
इस प्रकार विपाक का अध्येता आत्मा-विपाक में परिणत हो जाता है।
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