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पांचवां प्रकरण : द्वादशांग विवरण: सूत्र ८६-६१
वणा आघविज्जइ । सेत्तं अणु- आख्यायते । ताः एताः अनुत्तरोपत्तरोववाइयदसाओ॥
पातिकदशाः ।
जाता है। वह इस प्रकार ज्ञाता और विज्ञाता हो जाता है । इस प्रकार अनुत्तरोपपातिक में चरण-करण की प्ररूपणा का आख्यान किया गया है। वह अनुत्तरोपपातिकदशा है।
१०. से कि तं पण्हावागरणाई ? अथ कानि तानि प्रश्नव्याकरणानि? ९०. वह प्रश्नव्याकरण क्या है ?
पण्हावागरणेसु णं अठुत्तरं प्रश्नव्याकरणेषु अष्टोत्तरं प्रश्नशतम्, प्रश्नव्याकरण में एक सौ आठ प्रश्न, एक पसिणसयं, अठ्ठत्तरं अपसिणसयं अष्टोत्तरम् अप्रश्नशतम्, अष्टोत्तर सौ आठ अप्रश्न, एक सौ आठ प्रश्नाप्रश्न अठत्तरं पसिणापसिणसयं, अण्णे प्रश्नाप्रश्नशतम्, अन्ये च विचित्राः और अन्य विचित्र दिव्य विद्यातिशय तथा य विचित्ता दिव्वा विज्जाइसया, दिव्याः विद्यातिशयाः, नागसुपर्णः ___ नागकुमार और सुपर्णकुमारों के साथ हुए नागसवणेहि सद्धि दिव्वा संवाया साधं दिव्याः संवादाः आख्यायन्ते । दिव्य संवादों का आख्यान किया गया है । आधविज्जति। पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा, प्रश्नव्याकरणानां परीताः वाचना:,
प्रश्नव्याकरण में परिमित वाचनाएं, संखेज्जा अणओगदारा, संखेज्जा संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि, संख्येयाः संख्येय अनुयोगद्वार, संख्येय वेढा (छंदवेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ वेष्टाः, संख्येयाः श्लोकाः, संनयेयाः विशेष), संख्येय श्लोक, संख्येय नियुक्तियां, निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगह- निर्युक्तयः, संख्येयाः संग्रहण्यः,
संख्येय संग्रहणियां और संख्येय प्रतिपत्तियां णीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। संख्येयाः प्रतिपत्तयः ।
से गं अंगट्टयाए दसमे अंगे एगे तद् अङ्गार्थतया दशमम् वह अंगों में दसवां अंग है । उसके एक सुयक्खंधे, पणयालीसं अज्झयणा, अंगम्, एकः श्रुतस्कन्धः, पञ्चचत्वा- श्रुतस्कन्ध, पैतालीस अध्ययन, पैतालीस पणयालीसं उद्देसणकाला, पणया- रिशद् अध्ययनानि, पञ्चचत्वारिंशद् उद्देशन-काल, पैतालीस समुद्देशन-काल, पद लीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं उद्देशनकालाः, पञ्चचत्वारिंशत् परिमाण की दृष्टि से संख्येय हजार पद, पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा समुद्देशनकालाः, संख्येयानि पदसह- संख्येय अक्षर, अनन्त गम, अनन्त पर्यव हैं। अक्खरा, अणंता गमा, अणंता स्राणि पदाण, संख्येयानि अक्षराणि, उसमें परिमित त्रस, अनन्त स्थावर, शाश्वतपज्जवा, परित्ता तसा, अणंता अनन्ताः गमाः, अनन्ताः पर्यवाः, परीताः कृत-निबद्ध-निकाचित जिनप्रज्ञप्त भावों का थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निका- त्रसाः, अनन्ताः स्थावराः, शाश्वत- आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन इया जिणपण्णत्ता भावा आघ- कृत-निबद्ध-निकाचिताः जिनप्रज्ञप्ताः और उपदर्शन किया गया है। विज्जति पण्णविज्जंति परू- भावाः आख्यायन्ते प्रज्ञाप्यन्ते प्ररूविज्जति दंसिर्जति निदंसिज्जति प्यन्ते दयन्ते निदर्श्यन्ते उपदयन्ते । उवदंसिज्जति ।
से एवं आया, एवं नाया, एवं स एवमात्मा, एवं ज्ञाता, एवं इस प्रकार प्रश्नव्याकरण का अध्येता विण्णाया, एवं चरण-करण-परू- विज्ञाता, एवं चरण-करण-प्ररूपणा आत्मा-प्रश्नव्याकरण में परिणत हो जाता वणा आघविज्जइ । सेत्तं पण्हा- आख्यायते। तानि एतानि प्रश्न- है। वह इस प्रकार ज्ञाता और विज्ञाता हो वागरणाई॥ व्याकरणानि ।
जाता है। इस प्रकार प्रश्नव्याकरण में चरण-करण की प्ररूपणा का आख्यान किया गया है। वह प्रश्नव्याकरण है।
११.से कि तं विवागसुयं ? विवागसुए अथ किं तत् विपाकश्रुतम् ? ९१. वह विपाकश्रुत क्या है ?
णं सुकड-दुक्कडाणं कम्माणं विपाकश्रुते सुकृत-दुष्कृतानां कर्मणां विपाकश्रुत में सुकृत और दुष्कृत कर्मों के फलविवागे आविज्जइ। तत्थ णं फलविपाक: आख्यायते । तत्र दश फल का आख्यान किया गया है। विपाक में दस दुहविवागा, दस सुहविवागा। दुःखविपाकाः, दश सुखविपाकाः । दस दुःखविपाक हैं, दस सुखविपाक हैं।
से कि तं दुहविवागा ? दुह- अथ के ते दुःखविपाका: ? विवागेसु णं दुहविवागाणं नगराइं, दुःखविपाकेषु दुःखविपाकानां नग
वे दुःखविपाक क्या हैं ? दुःखविपाक में दुःखविपाक वाले मनुष्यों
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