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________________ नंदी समवाय में परिमित वाचनाएं, संख्येय अनुयोगद्वार, संख्येय वेढा (छंद-विशेष), संख्येय श्लोक, संख्येय नियुक्तियां, संख्येय संग्रहणियां और संख्येय प्रतिपत्तियां हैं। १४० समवायस्स णं परित्ता वायणा, समवायस्य परीताः वाचनाः, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा- संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि, संख्येयाः वेढा, संखेज्जा सिलोगा,संखेज्जाओ वेष्टाः, संख्येयाः श्लोकाः, संख्येयाः निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगह- नियुक्तयः, संख्येयाः संग्रहण्यः, णीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। संख्येयाः प्रतिपत्तयः । से गं अंगठ्ठयाए चउत्थे अंगे, तद् अङ्गार्थतया चतुर्थम् अङ्गम्, एगे सुयक्खंधे, एगे अज्झयणे, एगे एकः श्रुतस्कन्धः, एकम् अध्ययनम्, उद्देसणकाले, एगे समुद्देसणकाले, एकः उद्देशनकालः, एकः समुद्देशनएगे चोयाले पयसयसहस्से कालः, एक चतुश्चत्वारिंशत् पदशतपयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता सहस्र पदाग्रेण, संख्येयानि अक्षराणि, गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता अनन्ताः गमाः, अनन्ताः पर्यवाः, तसा, अणंता थावरा, सासय-कड- परीताः प्रसाः, अनन्ताः स्थावराः, निबद्ध-निकाइया जिणपण्णता शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाचिताः जिनभावा आघविज्जति पण्णविज्जति प्रज्ञप्ताः भावाः आख्यायन्ते प्रज्ञाप्यन्ते परूविज्जति दंसिज्जंति निदंसि- प्ररूप्यन्ते दर्श्यन्ते नियन्ते उपवयन्त। ज्जति उवसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं स एवमात्मा, एवं ज्ञाता, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण- विज्ञाता, एवं चरण-करण-प्ररूपणा परूवणा आघविज्जइ। सेत्तं सम- आख्यायते । स एष समवायः। वाए॥ वह अंगों में चौथा अंग है। उसके एक श्रुतस्कन्ध, एक उद्देशन-काल, एक समुद्देशनकाल, पद परिमाण की दृष्टि से एक लाख चौवालीस हजार पद, संख्येय अक्षर, अनन्त गम और अनन्त पर्यव हैं। उसमें परिमित बस अनन्त स्थावर, शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाचित जिनप्रज्ञप्त भावों का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया गया है। इस प्रकार समवाय का अध्येता आत्मासमवाय में परिणत हो जाता है। वह इस प्रकार ज्ञाता और विज्ञाता हो जाता है। इस प्रकार समवाय में चरण-करण की प्ररूपणा का आख्यान किया गया है । वह समवाय है । ८५. वह व्याख्या (भगवती) क्या है ? व्याख्या में जीवों की व्याख्या, अजीवों की व्याख्या तथा जीव-अजीव-दोनों की व्याख्या की गई है। स्वसमय की व्याख्या, परसमय की व्याख्या तथा स्वसमय-परसमयदोनों की व्याख्या की गई है । लोक की व्याख्या, अलोक की व्याख्या तथा लोकअलोक-दोनों की व्याख्या की गई है। ८५.से कि तं वियाहे ? वियाहे णं अथ का सा व्याख्या? व्याख्यायां जीवा विआहिज्जंति, अजीवा जीवाः व्याख्यायन्ते, अजीवाः विआहिज्जति, जीवाजीवा विआ- व्याख्यायन्ते, जीवाजीवाः व्याख्याहिज्जंति । ससमए विआहिज्जति यन्ते । स्वसमयः व्याख्यायते, परसमयः परसमए विआहिज्जति, ससमय- व्याख्यायते, स्वसमय-परसमयः परसमए विआहिज्जति । लोए व्याख्यायते । लोकः व्याख्यायते, विआहिज्जति, अलोए विआ- अलोकः व्याख्यायते, लोकालोकः हिज्जति, लोयालोए विआ- व्याख्यायते। हिज्जति। वियाहस्स णं परित्ता वायणा, व्याख्यायाः परीताः वाचनाः, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि, वेढा, संखेज्जा सिलोगा; संख्येयाः वेष्टाः, संख्येयाः श्लोकाः, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखे- संख्येयाः नियुक्तयः, संख्येयाः ज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ संग्रहण्यः, संख्येयाः प्रतिपत्तयः। पडिवत्तीओ। से गं अंगद्रयाए पंचमे अंगे, एगे त अङ्गार्थतया पञ्चमम् अङ्गम्, मयक्खंध. एगे साइरेगे अज्झयण- एकः श्रुतस्कन्धः एक सातिरेक अध्ययन- सए, दस उद्देसगसहस्साइं, दस शतं, पश उद्देशकसहस्राणि, वश समुद्देसमुद्देसगसहस्साई, छत्तीसं वाग- शकसहस्राणि, पत्रिशद् व्याकरणरणसहस्साई, दो लक्खा अट्ठासीइं सहस्राणि, हे लक्षे अष्टाशीतिः पद व्याख्या में परिमित वाचनाएं, संख्येय अनुयोगद्वार, संख्येय वेढा (छंद-विशेष), संख्येय श्लोक, संख्येय नियुक्तियां, संख्येय संग्रहणियां और संख्येय प्रतिपत्तियां हैं। वह अंगों में पाचवां अंग है। उसके एक श्रतस्कंध,कछ अधिकार उद्देशक, दस हजार समुद्देशक, छत्तीस हजार व्याख्या द्वार, पद परिमाण की दृष्टि से दो लाख अट्ठाईस हजार पद, संख्येय अक्षर, Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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