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________________ १३७ पांचवां प्रकरण : द्वादशांग विवरण : सूत्र ७८-८२ समवाओ, वियाहपण्णत्ती, नाया- समवायः, व्याख्याप्रज्ञप्तिः, ज्ञातधर्म- प्राप्ति, ज्ञातधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, कथाः, उपासकदशाः, अन्तकृतदशाः, कृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोववाइय- अनुत्तरोपपातिकदशाः, प्रश्नव्या- विपाकश्रुत, दृष्टिवाद । दसाओ,पण्हावागरणाइं, विवाग- करणानि, विपाकश्रुतं, दृष्टिवादः । सुयं, दिठिवाओ॥ दुवालसंग-विवरण-पदं द्वादशांग-विवरण-पदम् द्वादशांग-विवरण-पद ८१.से कि तं आयारे? आयारे गं अथ कः स आचारः ? आचारे ८१. वह आचार क्या है ? समणाणं निग्गंथाणं आयार- श्रमणानां निर्ग्रन्थानाम् आचार-गोचर- आचार में श्रमण निग्रंथ के आचारगोयर-विणय-वेणइय-सिक्खा- विनय-वनयिक-शिक्षा-भाषा-अभाषा- गोचर-विनय-वैनयिक-शिक्षा-भाषा-अभाषाभासा-अभासा-चरण-करण-जाया- चरण-करण-यात्रा-मात्रा-वृत्तयः चरण-करण-यात्रा-मात्रा-वृत्ति का आख्यान माया-वित्तीओ आघविज्जति । से आख्यायन्ते । स समासतः पंचविधः किया गया है । वह संक्षेप में पांच प्रकार का समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं प्रज्ञप्तः, तद्यथा ज्ञानाचारः, दर्शना- प्रज्ञप्त है, जैसे-ज्ञानाचार, दर्शनाचार, जहा-नाणायारे, दसणायारे, चारः, चरित्राचारः, तपआचारः, चरित्राचार, तपआचार, वीर्याचार। चरित्तायारे, तवायारे, वीरियायारे। वीर्याचारः। आयारे णं परित्ता वायणा, आचारे परीताः वाचनाः, आचारांग में परिमित वाचनाएं, संख्येय संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि, संख्येयाः अनुयोगद्वार, संख्येय वेढा (छंद-विशेष), वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखे- वेष्टाः, संख्येयाः श्लोकाः, संख्येयाः संख्येय श्लोक, संख्येय नियुक्तियां और संख्येय ज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जा निर्यक्तयः, संख्येयाः प्रतिपत्तयः। प्रतिपत्तियां हैं। पडिवत्तीओ। से णं अंगठयाए पढमे अंगे, तद् अङ्गार्थतया प्रथमम् अंगम्, बह अंगों में प्रथम अंग है । उसके दो दो सुयक्खंधा, पणवीसं अज्झयणा, द्वौ श्रुतस्कन्धौ, पंचविंश अध्ययनानि, भुतस्कन्ध, पच्चीस अध्ययन, पचासी उद्देशनपंचासीइं उद्देसणकाला, पंचासीइं पंचाशीतिः उद्देशनकालाः, पंचाशीतिः काल, पचासी समुद्देशन-काल, पद परिमाण समुद्देसणकाला, अठारस पयस- समुद्देशनकालाः, अष्टादश पदसहस्राणि की दृष्टि से अठारह हजार पद, संख्येय हस्साणि पयग्गेणं, संखेज्जा पदाग्रेण, संख्येयाः अक्षराः, अनन्ताः अक्षर, अनन्त गम (सदृश पाठ), अनन्त पर्यव अक्खरा, अणंता गमा, अणंता गमाः, अनन्ताः पर्यवाः, परीताः हैं। उसमें परिमित त्रस, अनन्त स्थावर, पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता प्रसाः, अनन्ताः स्थावराः, शाश्वत- शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाचित जिनप्रज्ञप्त थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निका- कृत-निबद्ध-निकाचिताः जिनप्रज्ञप्ताः भावों का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, इया जिणपण्णत्ता भावा आघ- भावाः आख्यायन्ते प्रज्ञाप्यन्ते दयन्ते निदर्शन और उपदर्शन किया गया है। विज्जति पण्णविज्जति परू- निवर्यन्ते उपवय॑न्ते । विज्जति दंसिज्जंति निदंसिज्जति उवदंसिज्जंति । से एवं आया, एवं नाया, एवं स एवमात्मा, एवं ज्ञाता, एवं इस प्रकार आचार का अध्येता आत्माविण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा विज्ञाता, एवं चरण-करण-प्ररूपणा आचार में परिणत हो जाता है। वह इस आघविज्जइ । सेत्तं आयारे॥ आख्यायते । स एष आचारः । प्रकार ज्ञाता और विज्ञाता हो जाता है। इस प्रकार आचार में चरण-करण की प्ररूपणा का आख्यान किया गया है। वह आचार । २.से कि तं सूयगडे ? सूयगडे णं अथ किं तत् सूत्रकृतम् ? सूत्र- लोए सूइज्जइ, अलोए सूइज्जइ, कृते लोकः सूच्यते, अलोकः सूच्यते, लोयालोए सूइज्जइ । जीवा लोकालोकः सूच्यते । जीवाः सूच्यन्ते, सूइज्जति, अजीवा सूइज्जति, अजीवाः सूच्यन्ते, जीवाजीवाः ८३. वह सूत्रकृत क्या है ? । सूत्रकृत में लोक की सूचना, अलोक की सूचना तथा लोक-अलोक-दोनों की सूचना की गई है । जीवों की सूचना, अजीवों की Jain Education Intemational Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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