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नंदी के साथ गणिपिटक और श्रुतपुरुष ये दो प्रयोग मिलते हैं। गणिपिटक के बारह अङ्ग हैं अथवा बारह अङ्गवाला आगम गणिपिटक है। दोनों प्रकार से अनुप्रेक्षा की जा सकती है । श्रुतपुरुष की कल्पना उत्तरवर्ती है । इसमें पुरुष के बारह अंगों पर आगम के बारह अंगों का न्यास किया गया है।'
श्रुतपुरुष दृष्टिवाद
विपाकसूत्र
प्रश्नव्याकरण
अनुत्तरोपपातिक
अन्तकृतदशा
उपासकदशा
ज्ञातधर्मकथा
व्याख्याप्रज्ञप्ति
समवायांग
स्थानांग
सूत्रकृतांग
आचारांग आगम साहित्य में द्वादशाङ्ग का उल्लेख सूत्रकृत', स्थानाङ्ग, समवायाङ्ग', भगवती', उपासकदशा' तथा उत्तराध्ययन' में १. नन्दी चूणि, पृ. ५७:
४. समवाओ, १२, प्रकीर्णकसमवाय, सू. ८८, ९२, १३१ से पायदुर्ग जंघोरू गातदुगद्धं तु दो य बाहूयो ।
१३४ गीवा सिरं च पुरिसो बारसअंगो सुतविसिट्ठो॥
५. भगवई, १६९१, २०७५, २५२९६ २. सूयगडो, २११३५
६. अंगसुत्ताणि, भाग ३, उवासगदसाओ, २१४६, ६।२९ ३. ठाण, १०११०३
७. उत्तरज्झयणाणि, भाग २, २४।३
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