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________________ प्र० ४, गा० ७०,७१, टि०७,८ अथवा केवलज्ञान का परिमाण इतना ही होता है।' अक्षर पटल के विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य - नन्दी चूर्ण, पु. ५२-५५ सूत्र ७१ ८. ( सूत्र ७१) अक्षर के तीन प्रकार हैं १. ज्ञानाक्ष र २. ज्ञेयाक्षर ३. व्यञ्जनाक्षर, स्वराक्षर अथवा वर्णाक्षर । अकारादि स्वर है | ककार आदि व्यंजनाक्षर है। उनसे अर्थ अभिव्यक्त होता है। स्वरयुक्त व्यंजनों के द्वारा अर्थ का अभिलाप किया जाता है इसलिए उनकी संज्ञा वर्णाक्षर है । प्रत्येक अक्षर के अनन्त पर्याय हैं। उदाहरणस्वरूप अकार के अठारह पर्याय १. उदा निरनुनासिक हस्व २. अनुदास निरनुनासिक हस्ब २. स्वरित निरनुनासिक हस्य ४. उदात्त सानुनासिक ह्रस्व ५. अनुदात्त सानुनासिक हस्व ६. स्वरित सानुनासिक ह्रस्व ७. उदास निरनुनासिक दीर्घ ८. अनुदात निरनुनासिक दीर्थ ९. स्वरित नासिक दीर्घ १०. उदात्त सानुनासिक दीर्घ ११. अनुदास सानुनासिक दीर्घ १२. स्वरित सानुनासिक दीर्घ १३. उदात्त निरनुनासिक प्लुत १४. अनुदात्त निरनुनासिक प्लुत १५. स्वरित निरनुनासिक प्लुत १६. उदात्त सानुनासिक प्लुत १७. अनुदात्त सानुनासिक प्लुत १८. स्वरित सानुनासिक लुत ये अट्ठारह स्वपर्याय हैं, शेष सब परपर्याय हैं । आकाश को छोड़कर सब द्रव्यों के परपर्याय अनन्तगुना होते हैं । आकाश के स्वपर्याय से परपर्याय अनन्तवें भाग प्रमाण होते हैं । १२५ ज्ञानाक्षर, वर्णाक्षर और ज्ञेयाक्षर तीनों अनन्त हैं ।" प्रस्तुत सूत्र में अक्षर का प्रयोग ज्ञानात्मक ही विवक्षित है । उसका अनन्तवां भाग सदा उद्घाटित (अनावृत ) रहता है। यही जीव और अजीव की भेदरेखा का निर्माण करता है । केवलज्ञान का कोई विभाग नहीं होता इसलिए ज्ञान के विकास का अनन्तवां भाग उससे संबद्ध नहीं है । अवधिज्ञान की १. (क) नन्दी चूर्ण, पृ. ५२ : पज्जाया णाम- एक्केक्कस्साssगासपदेसस्स जावंतो अगुरुलहुयादी पज्जवा ते पण्णाए सव्वे संपिडिताणं जं अग्गं एतप्यमाणं अक्खरं लग्भति । (ख) विशेषावश्यक भाष्य, गा. ४७७ से ५०० (ग) बृहत्कल्प भाष्य, भाग १, पृ. २२ से २५ (घ) हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ६८ (ड) मलयगिरीया वृत्ति, प. १९८, १९९ Jain Education International २. नन्दी चूर्ण, पृ. ५४ ५५ : एत्थ अकारस्स अकारजातीसामण्णतो सपज्जाया अट्ठारस, सेसा परपज्जाया, एवं संखेज्जा पज्जाया । अहवा अकारादिसरा ककारादिवंजणा केवला अण्णसहिता वा जं अभिलावं लभे स तस्स सपज्जायो, सेसा तस्स परपज्जाया, ते य सव्वे वि अनंता । ३. वही, पृ. ५५ : नाणक्खरं अकाराविभक्खरं गेयअक्खरं विविताऽभिहिता । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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