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तीसरा प्रकरण : परोक्ष-अभिनियोधिक ज्ञान सूत्र ५४
हा अपोहः विमर्शः,
मार्गणा च गवेषणा ।
हा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवसणा । सण्णा सई मई पण्णा, सव्वं आभिणिबोहियं ॥ ६ ॥ सेतं आभिणियोहियनाणपरोक्तं ॥
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संज्ञा स्मृतिः मतिः प्रज्ञा, सर्वमाभिनिबोधिकम् ॥ तदेतद् आभिनिबोधिकज्ञानपरोक्षम् ।
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६. ईहा अपोह विमर्शना मार्गणा,
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गवेषणा संज्ञा, स्मृति, मति, प्रज्ञा ये सब अभिनिवोधिज्ञान के पर्यायवाची है।" वह आभिनिबोधिक परोक्षज्ञान है ।
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