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________________ तीसरा प्रकरण : परोक्ष-आमिनिबोधिक ज्ञान : सूत्र ३८-४१ ८३ सीया साडी दीहं, शीता साटी दीर्घ, च तणं अवसव्वयं च कंचस्स । च तृणमपसव्यञ्च क्रौञ्चस्य । निव्वोदए य गोणे, नोवोदकञ्च गौः, घोडगपडणं च रुक्खाओ ॥७॥ घोटकः पतनञ्च रूक्षात् ॥ कम्मया बुद्धी कर्मजा बद्धिःउवओगदिट्ठसारा, उपयोगदृष्टसारा, कम्मपसंगपरिघोलण-विसाला । कर्मप्रसंगपरिघोलन-विशाला। साहुक्कारफलवई, साधुकारफलवती, कम्मसमुत्था हवइ बुद्धी ॥८॥ कर्मसमुत्था भवति बुद्धिः॥ हेरण्णिए करिसए, हैरण्यिकः कर्षकः, कोलिय डोए य मुत्ति-घय-पवए। 'कोलिय डोए' च मौक्तिक-धृत प्लवकाः। तुण्णाग वड्ढइ पूइए य, तुन्नागः वर्धकि पूपिकश्च, घड-चित्तकारे य ॥६॥ घट-चित्रकारौ च ॥ परिणामिया बुद्धी पारिणामिकी बुद्धिःअणुमाण हेउ-दिळंत-साहिया, अनुमान हेतु-दृष्टान्त-साधिका, वयविवाग-परिणामा। वयोविपाक-परिणामा। हियनिस्सेयसफलवई, हितनिःश्रेयसफलवती, बुद्धो परिणामिया नाम ॥१०॥ बुद्धिः पारिणामिकी नाम ॥ अभए सिट्ठि-कुमारे, अभयः श्रेष्ठि-कुमारी, देवी उदिओदए हवइ राया। देवी उदितोदयो भवति राजा । साहू य नंदिसेणे, साधुश्च नन्दिषणः, धणदत्ते सावग-अमच्चे ॥११॥ धनदत्तः श्रावकोऽमात्यः ॥ खमए अमच्चपुते, क्षपकोऽमात्यपुत्रः, चाणक्के चेव थूलभद्दे य । चाणक्यश्चैव स्थूलभद्रश्च । नासिक्क-सुंदरीनंदे, नासिक्य-सुन्दरीनन्दः, वइरे परिणामिया बुद्धी ॥१२॥ वज्रः पारिणामिकी बुद्धिः॥ चलणाहण-आमंडे, चलनाहत-'आमंडे', मणी य सप्पे य खग्गि-भिदे । मणिश्च सर्पश्च खड्गी-स्तूपभेदः । परिणामियबुद्धीए, पारिणामिक्या बुद्धया, एवमाई उदाहरणा ॥१३॥ एवमोदीनि उदाहरणानि ॥ सेत्तं असुयनिस्सियं ॥ तदेतद् अश्रुतनिश्रितम् । ३६. से कि तं सुयनिस्सियं ? सुयनि- __अथ किं तत् श्रुतनिश्रितम् ? स्सियं चउम्विहं पण्णत्तं तं जहा-- श्रुतनिश्रितं चतुविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथाउग्गहे ईहा अवाओ धारणा ॥ अवग्रहः ईहा अवायः धारणा । कर्मजा बुद्धि ८. उपयोग (दत्तचित्तता) के द्वारा कर्म के रहस्य को देखने वाली, साधुवाद है फल जिसका, उस कर्म से उत्पन्न होने वाली बुद्धि का नाम कर्मजा है। ९. १. स्वर्णकार २. कृषक ३. जुलाहा ४. दर्वीकार ५. मौक्तिक ६. घृत-व्यापारी ७. तैराक ८. रफू करने वाला ९. बढ़ई १०. रसोइया ११. कुंभकार १२ चित्रकार । पारिणामिको बुद्धि १०. अनुमान हेतु और दृष्टान्त से साध्य को सिद्ध करने वाली, वय विपाक से परिपक्व होने वाली, अभ्युदय और निःश्रेयस फल बाली उस बुद्धि का नाम पारिणामिकी है। ११,१२. १. अभयकुमार २. श्रेष्ठी ३. कुमार ४. देवी ५. उदितोदितराजा ६. साधु नन्दिषेण ७. धनदत्त ८. श्रावक ९. अमात्य १०. क्षपक ११. अमात्य पुत्र १२. चाणक्य १३. स्थूलभद्र १४. नासिक्य सुन्दरी नंद १५. वज्र-इनकी बुद्धि परिणामिकी थी। १३.१ चरण से आहत २. कृत्रिम आंवला ३. मणि ५. सर्प ६. स्तूप उखाड़ना-ये सब पारिणामिकी बुद्धि के उदाहरण हैं। वह अश्रुतनिधित है। ३९. वह श्रुतनिश्रित क्या है ? श्रुतनिश्रित चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे१. अवग्रह २. ईहा ३. अवाय ४. धारणा । ४०. से कि तं उग्गहे ? उग्गहे दुविहे अथ कः स अवग्रहः ? अवग्रहः पण्णतं, तं जहा--अत्यग्गहे य द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा--अर्थाव- वंजणुग्गहे य ॥ ग्रहश्च व्यञ्जनावग्रहश्च । ४१. से कि तं वंजणुग्महे ? वंजगुग्गहे अथ कः स व्यञ्जनावग्रहः ? चउब्बिहे पण्णते, तं जहा-सोई- व्यञ्जनावग्रहश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, ४०. वह अवग्रह क्या है ? अवग्रह दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे१. अर्थावग्रह २. व्यञ्जनावग्रह । ४१. वह व्यञ्जनावग्रह क्या है ? व्यञ्जनावग्रह चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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