SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूल पाठ परोकखनाण-पदं ३४. से कि तं परोक्तं ? परोक् दुविहं पण्णत्तं तं जहाआभिणिवोहियनाणपरोक्तं च सुयनागपरोक्तं च ॥ तत्थ ३५. जत्थाभिणिवोहियनाणं, सुयनाणं । जत्थ सुयनाणं, तत्थाभिणिबोहियनाणं । दोवि एयाई अण्णमण मणुगवाई, तहवि पुण इत्थ आयरिया नाणत्तं वयंति - अभिनिबुज्झइ सि आभिणिबोहियं । सुइ त्ति सुयं । मद्दवं सूर्य, न मई सुयपुव्विया ॥ पण्ण ३६. अविसेसिया मई- मई नाणं च मई अण्णाणं च विसेसियासम्मद्दिस्सि मई मइनाणं, मिन्छछिट्टिस्स मई महअण्णानं ॥ आभिणिबोहियनाण-पदं ३७. से कि तं आभिणियोहियनाणं आभिणिबोहियनाणं दुदिहं पण्णत्तं तं जहा - सुयनिस्सियं च असुयनिस्सियं च ॥ तीसरा प्रकरण परोक्ष- आभिनिबोधिकज्ञान Jain Education International संस्कृत छाया अविशेषिता मतिः - मतिः ज्ञानञ्च, मतिः अज्ञानञ्च । विशेषिता सम्यगुष्टेः मतिः मति- ज्ञानं, मिथ्यादृष्टेः मतिः मति:अज्ञानम् । अविसेसि सुयं सुवनाणं च अविशेषितं श्रुतं श्रुतज्ञानञ्च सुयअण्णाणं च विसेसियं सम्म श्रुताज्ञानञ्च । विशेषितं - सम्यग् - दिस्ति सुखं सुना, मिष्ठेतानं मध्यादृतेः दिट्टिस्स सुयं सुयअण्णा || श्रुतं श्रुताज्ञानम् । अभिनियोधिकज्ञान-पदम् अथ किं तद् अभिनिबोधिकज्ञानम् ? अभिनिबोधिकज्ञानं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा—तनिधितञ्च अश्रुतनिश्रितञ्च । अथ किं तद् अश्रुतनिश्रितम् ? चतुविधं प्रज्ञप्तं, परोक्षज्ञान-पदम् अथ किं तत् परोक्षम् ? परोक्षं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा--आभिनिबोधिकशतपरोक्ष श्रुतज्ञान परोक्षञ्च । यत्र आभिनिबोधिकज्ञानं तत्र श्रुतज्ञानम् । यत्र श्रुतज्ञानं, तत्र आभिनिबोधिकज्ञानम् । द्वे अपि एते अन्योन्यमनुगते, तथापि पुनरज आचार्याः नामात्वं प्रज्ञाययति अभिनिष्यते इति आभिनियोधिकम् भूयते इति श्रुतम् । मतिपूर्वं श्रुतं न मतिः श्रुतपूर्विका । ३८. से कि तं असुयनिस्सिय ? अयनिस्सियं चउव्विहं पण्णत्तं तं अश्रुतनिश्रितं जहा तद्यथा हिन्दी अनुवाद परोक्षज्ञान- पद ३४. वह परोक्षज्ञान क्या है ? वह परोक्षज्ञान दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे - १ आभिनिबोधिकज्ञान परोक्ष २. श्रुतज्ञान परोक्ष | २५. जहां आभिनिवोधिकशान है, यहां श्रुतज्ञान है। जहां श्रुतज्ञान है. वहां आभिनिबोधिकज्ञान है। ये दोनों अन्योन्य- परस्पर अनुगत है, फिर भी यहां आचार्यों ने उनके नानात्व का प्रज्ञापन किया है । जो अभिनिवोध किया जाता है. वह आभिनिबोधिक है । जो सुना जाता है वह श्रुत है । श्रुत मतिपूर्वक होता है, मति श्रुतपूर्वक नहीं होती । ' ३६. विशेषण रहित मति मतिज्ञान और मतिअज्ञान है विशेषण सहित मति सम्बि की मति मतिज्ञान है, मिध्यादृष्टि की मति मतिअज्ञान है । For Private & Personal Use Only विशेषण रहित श्रुतश्रुतज्ञान और त अज्ञान है। विशेषण सहित श्रुतसम्यष्टि का ज्ञान है। मिथ्यादृष्टि का बुत श्रुतअज्ञान है ।" आभिनियोधिक ज्ञान-पद ३७. वह आभिनिवोधिकज्ञान क्या है ? आभिनिबोधिकज्ञान दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- १. निधित २ अननिधित ३८. वह अश्रुतनिश्रित क्या है ? वह अश्रुतनिश्रित चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy