SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तुत प्रकरण में परोक्ष ज्ञान का प्रतिपादन है। ज्ञान मीमांसा के संदर्भ में 'परोक्ष' शब्द का प्रयोग जैन आगम युग की विशिष्ट देन है। अभिनयका और ज्ञान में दोनों को साक्षात् नहीं जानते इसलिए इन्हें परोक्ष माना दार्शनिक युग अथवा प्रमाण मीमांसा के युग में परोक्ष शब्द का प्रयोग अस्पष्ट ज्ञान के अर्थ में हुआ है । ज्ञान मीमांसा में प्रयुक्त परोक्ष के दो प्रकार हैं १. आभिनिबोधिक ज्ञान २. श्रुतज्ञान । प्रमाण मीमांसा में प्रयुक्त परोक्ष के पांच प्रकार हैं १. स्मृति २. प्रत्यभिज्ञा ३. तर्क -b⋅ आमुख अनुमान ५. आगम । आगमकार ने मति और श्रुत अज्ञान की विभेदक रेखा प्रस्तुत की है वह उनकी स्वोपज्ञ व्याख्या है या उसका कोई प्राचीन आगमिक आधार है यह अनुसंधेय है। आभिनिबोधिक ज्ञान के दो विभाग हैं१. श्रुत निश्रित २. अश्रुत निश्रित । अश्रुतनिश्रित का सिद्धांत ज्ञान मीमांसा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी प्रकल्प है। हमारे ज्ञान का माध्यम केवल इन्द्रियां या ग्रंथ ही नहीं है उनकी सहायता के बिना भी ज्ञान उत्पन्न होता है और सत्य की खोज में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। अदृष्ट, अश्रुत और अज्ञात अर्थ का सहसा ज्ञान हो जाना एक विशिष्ट घटना है । सूत्रकार ने बुद्धि चतुष्टय को स्पष्ट करने के लिए अनेक गाथाएं प्रस्तुत की है। उनमें कथाओं और ऐतिहासिक वृत्तों का विशाल संग्रह है। उनकी संख्या पचहत्तर है । अश्रुतनिश्रित ज्ञान मीमांसा का एक गहन विषय है। उसे अनेक कोणों से समझाया गया है। श्रुत के अध्ययन के बिना भी मनुष्य की चेतना विकसित हो जाती है। इससे ज्ञात होता है कि मस्तिष्क के अनेक खंड है। एक खण्ड का विकास श्रुत ग्रन्थों के अध्ययन से होता है उसका नाम ग्रहण शिक्षा है। शिक्षा के क्षेत्र में उसी प्रणाली का उपयोग होता है। अश्रुतनिश्रित ज्ञान शिक्षा की कोई प्रणाली नहीं है। वह मस्तिष्क के उस बंड से विकसित होता है जिसमें ज्ञान पहले से संचित रहता है और जो अभिव्यक्त होने में किसी बाह्य निमित्त की अपेक्षा नहीं रखता। आगमकार के सामने वैज्ञानिक आविष्कारों की घटनाएं नहीं थी अन्यथा अश्रुत निश्रित ज्ञान के प्रसंग में आकस्मिक ढंग से होने वाली घटनाओं की एक लम्बी तालिका प्रस्तुत हो जाती। अनेक आविष्कार स्वप्न अवस्था अथवा चितनातीत अवस्था में हुए हैं उनकी व्याख्या अश्रुतनिश्रित ज्ञान के द्वारा ही की जा सकती है । अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा का सर्वप्रथम उल्लेख नियुक्ति में मिलता है। इसके पश्चात् उमास्वाति ने तत्त्वार्थसूत्र में उनका उल्लेख किया है।' आगम साहित्य में इनका उल्लेख प्रस्तुत आगम में मिलता है। स्थानाङ्ग, भगवती आदि में प्रस्तुत आगम ( नन्दी) का ही पाठ संकलित अथवा उद्धृत किया गया है । आचाराङ्ग आदि आगम ग्रन्थों में ज्ञान मीमांसा प्रतिपाद्य नहीं है । यह १. नवसुत्ताणि, नंदी, सू० ३४ २. आवश्यक निर्युक्ति, गा. २ : उग्गह इहाडवाओ य धारणा एव हुंति चत्तारि । आयिोनारस पत् समासेणं ॥ ३. सूत्र, ११५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy