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तथ्य का समवायांग तथा नन्दी में स्पष्ट उल्लेख है - 'सूयगडेणं ससमया सुइज्जंति, परसमया सूइज्जंति, ससमया परसमया सूइज्जति । "
'अर्थस्य सूचनात् सूत्रम्' इस व्याख्या के अनुसार जो अर्थ का सूचन करता है, वह सूत्र कहलाता है। प्रस्तुत आगम में सूचनात्मक तत्त्व की मुख्यता होने से इसका नाम सूत्रकृत है।
अचेलक परम्परा में इस अंग के तीन नाम मिलते है - सुद्दयड, सूदयड और सूदयद । इनमें प्रयुक्त 'सुद्द' या 'सूद' शब्द 'सूत्र' का एवं 'यड' अथवा 'यद' शब्द कृत का सूचक है। इस प्रकार इस अंग के प्राकृत नामों का संस्कृत रूपान्तर 'सूत्रकृत' ही समीचीन है। पूज्यपाद से लेकर श्रुतसागर तक के सभी तत्त्वार्थवृत्तिकारों ने सूत्रकृत नाम का ही उल्लेख किया है।' आचार्य वीरसेन के अनुसार इस सूत्र में अन्य दार्शनिकों का वर्णन है । ' इस आगम की रचना का आधार भी यही है । अतः इसका सूत्रकृत नाम रखा गया है। सूत्रकृत के अन्य व्युत्पत्तिपरक अर्थों की अपेक्षा प्रस्तुत अर्थ वास्तविकता के अधिक निकट प्रतीत होता है।
सूत्रकृतांग एवं बौद्ध दर्शन के सुत्तनिपात में मात्र नाम साम्य ही नहीं पाया जाता अपितु गाथांश, गाथाएँ, भाव, भाषा एवं शब्द संयोजना की अपेक्षा भी काफी साम्यता है ।
वर्गीकरण
युगप्रधान आर्य - रक्षिताचार्य ने द्वादशांगी का चार विभागों में वर्गीकरण किया है- चरणकरणानुयोग, द्रव्यानुयोग, धर्मकथानुयोग तथा गणितानुयोग । चूर्णिकार' के अनुसार प्रस्तुत आगम चरणकरणानुयोग (आचार शास्त्र) है जबकि वृत्तिकार ने इसे द्रव्यानुयोग की कोटि में रखा है। उनका यह मन्तव्य है कि आचारांग में मुख्य रूप से चरणकरणानुयोग का वर्णन है और सूत्रकृतांग में द्रव्यानुयोग
का ।
समवायांग तथा नन्दीसूत्र में द्वादशांगी का जो विवरण किया गया प्रस्तुत है, वहाँ पर 'एवं चरणकरण परूवता' यह पाठ उपलब्ध होता है। आचार्य अभयदेव ने चरण का अर्थ श्रमणधर्म तथा करण का अर्थ पिण्डविशुद्धि समिति किया है । ' चूर्णिकार ने कालिकत को चरणकरणानुयोग तथा दृष्टिवाद को द्रव्यानुयोग के अन्तर्गत माना है।" द्वादशांगी में दृष्टिवाद ही मुख्यत: द्रव्यानुयोग है। अन्य एकादश
72 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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