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पूर्वी से संक्षिप्त सार लेकर इनका निर्यूहण या संकलन किया है, वे उसके कर्त्ता के रूप में प्रसिद्ध है - जैसे दशवैकालिक के कर्त्ता आचार्य शय्यम्भव है।
आगमों की संख्या
यद्यपि अंग साहित्य की अपेक्षा से किसी प्रकार का मतभेद नहीं है, सभी श्वेताम्बर दिगम्बर” द्वादशांग स्वीकार करते है परन्तु अंगबाह्य के सम्बन्ध में विभिन्न मत है। कुल मिलाकर कोई 45 आगम मानते हैं, कोई 84 तो कोई 32 |
नदीसूत्र में आगमों की जो सूची है, उसमें से कुछ आगम उपलब्ध नहीं है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय 45 आगम मानता हैं एवं अमूर्तिपूजक सम्प्रदाय 32 मानता है । दिगम्बर समाज की मान्यता है कि सभी आगम विच्छिन्न हो गये हैं। 45 आगमों के नाम इस प्रकार है ।
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11 अंग आगम 1. आचारांग, 2. सूत्रकृतांग, 3. स्थानांग, 4. समवायांग, 5. भगवती, 6. ज्ञाताधर्मकथा, 7. उपासकदंशा, 8 अन्तकृत् दशा, 9. अनुत्तरोपपातिकदशा, 10. प्रश्नव्याकरण एवं 11. विपाक सूत्र ।
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12 उपांग आगम औपपातिक, 2. राजप्रश्नीय, 1.
3.
जीवाभिगम, 4. प्रज्ञापना, 5. सूर्यप्रज्ञप्ति, 6. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, 7. चन्द्रप्रज्ञप्ति, 8 निरयावलिका, 9. कल्पवतंसिका, 10. पुष्पिका, 11. पुष्पचूलिका और 12. वह्निदशा ।
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10 प्रकीर्णक सूत्र 1. चतु:शरण, 2. आतुरप्रत्याख्यान, 3. महाप्रत्याख्यान, 4. भक्तपरिज्ञा, 5. तंदुलवेतालिक, 6. गणिविद्या, 7. चंद्रविजय, 8. देवेन्द्रस्तव, 9. मरणसमाधि और 10. संस्तारक ।
6 छेदसूत्र - 1. दशाश्रुतस्कन्ध, 2. बृहत्कल्प, 3. व्यवहार, 4. जीतकल्प, 5. निशीथ और 6. महानिशीथ ।
4 मूलसूत्र - 1. आवश्यक, 2. दशवैकालिक, 3. उत्तराध्ययन और 4. पिंड नियुक्ति ।
2 चूलिका सूत्र 1. नन्दी सूत्र और 2. अनुयोगद्वार सूत्र ।
आगमों की भाषा
जैन आगमों की मूलभाषा अर्धमागधी है।" इसे सामान्यतः प्राकृत भी कहते हैं । समवायांग और औपपातिक " सूत्र के अनुसार तीर्थंकर अर्धमागधी भाषा का ही प्रयोग करते हैं ।
जैन आगम साहित्य : एक अनुशीलन / 53
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