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वहीं भारतीय संस्कृति में उपजी समस्त मान्यताओं का भी विस्तारपूर्वक विवेचन है । अगर कोई यह कहे कि एक सम्पूर्ण आगम का नाम बताइये जिसे पढ़ने पर सम्पूर्ण भारतीय दर्शन तथा जैन आचार संहिता का अध्ययन हो सके तो निःसन्देह सूत्रकृतांग का नाम सर्वप्रथम उभर आता है ।
भारतीय संस्कृति मुख्य रूप से आत्मा के इर्दगिर्द ही घूमती है। उसके बंधन एवं उनसे मुक्ति ही प्रत्येक धर्मदर्शन का लक्ष्य है। निश्चय ही सूत्रकृतांग हमारी इन समस्त अपेक्षाओं पर खरा उतरता प्रतीत होता है । सूत्रकृतांग के प्रथम सूत्र में ही कहा है- बंधन को जानकर उन्हें तोड़ने का प्रयास करें। बंधन क्या है और उसे तोड़ने के क्या-क्या उपाय है, तोड़कर जहाँ पहुँचना है, उस सिद्धिगति के सम्बन्ध में क्या अवधारणा है, आदि-आदि विषयों का सम्पूर्ण दार्शनिक एवं तार्किक विश्लेषण इसमें उपलब्ध है।
408 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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