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था। सूत्रकृतांग में उसका प्रतिनिधि वाक्य है 'अत्तहियं खु दुहेण लब्भई' आत्महित कष्ट से होता है। 'सातं सातेण विज्जई' इसी का प्रतिपक्ष सिद्धान्त है। इसके माध्यम से बौद्धों ने जैनों के सामने यह विचार प्रस्तुत किया कि शारीरिक कष्टों की अपेक्षा मानसिक समाधि का सिद्धान्त श्रेष्ठ है । कार्यकारण के सिद्धान्तानुसार उन्होंने यह प्रतिपादित किया कि दुःख सुख का कारण नहीं हो सकता इसलिये सुख से ही सुख की प्राप्ति होती है।
सूत्रकृतांग वृत्तिकार ने भी सातवाद को बौद्धों का अभिमत माना है किन्तु साथ-साथ इसे परीषह से पराजित कुछ जैन मुनियों का भी अभिमत माना है । " 6. समुच्छेदवादी प्रत्येक पदार्थ क्षणिक होता है। दूसरे क्षण उसका उच्छेद हो जाता है, अत: बौद्ध समुच्छेदवादी है ।
7. नित्यवादी - सांख्याभिमत सत्कार्यवाद के अनुसार पदार्थ कूटस्थनित्य है । कारणरूप में प्रत्येक वस्तु का अस्तित्व विद्यमान है। कोई भी नया पदार्थ उत्पन्न नहीं होता है और कोई भी पदार्थ नष्ट नहीं होता है । केवल उसका आविर्भाव और तिरोभाव होता है । '
8. असत् परलोकवादी - चावार्क दर्शन मोक्ष या परलोक स्वीकार नहीं करता ।
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स्थानांग सूत्र - 8/22 नयोपदेश, श्लोक 126
सन्दर्भ एवं टिप्पणी
स्याद्वादमंजरी, श्लोक
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स्वतोनुवृत्ति व्यतिवृत्ति भाजो, भावा न भावान्तरनेयरूपा । परात्मतत्वादतथात्मतत्वाद, द्रयंवदन्तोः कुशलाः स्खलन्ति ॥ वही, श्लोक
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मुक्तोपि वाम्येतु भवभवोवा, भवस्थशून्योस्तु मितात्मवादे । षड्जीवकायं त्वमनन्तसंख्य, सांख्यस्तथा नाथ यथा न दोष: ।। न्यायसूत्र 4/1/19-21 ईश्वरः कारण पुरुष कर्माफत्यदर्शनात् ।
न पुरुष कर्माभावे फलानिष्यतेः । तत्कारितत्वादहेतु
स्थानांगवृत्ति पत्र 404
सूत्रकृतांग चूर्णि पृ.
सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र सांख्याकारिका
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96 : इदानीं शाक्या परामृश्यन्ते ।
97 एके शाक्यादय: स्वयूथ्या वा लोचादिनोपतप्ताः ।
सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित वादों का तुलनात्मक अध्ययन / 387
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