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________________ एवं अशाश्वत दोनों प्रकार से प्रतिपादित किया है।' ___ 'लोक पौर्वापर्य के चक्र से मुक्त है। लोक कालत: अनादि अनंत है। लोक अपेक्षा से शाश्वत भी है और अशाश्वत भी है।' भगवान महावीर के ये तीनों कथन जगत्कर्तृत्ववाद का खण्डन करने के लिये पर्याप्त है। सन्दर्भ एवं टिप्पणी प्रश्नव्याकरण सूत्र, 1/2/48-49 (मधुकर मुनि) Greek Thinkers - by Theoder Gomperz, Vol. 1, P. 48 वही - Vol. 1, P. 51-52 The principal Upnishads - by Dr. S. Radhakrishan P.404 अथर्ववेद - 17/1/19 शतपथ ब्राह्मण - 1/1/2/3 भगवती सूत्र - 1/6/290 वही, 2/1/44-45 वही, 4. स्थानांग में वर्णित अक्रियावाद एवं दार्शनिक मान्यताएँ सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित चार समवसरण में एक अक्रियावादी है। वहाँ उसका अर्थ अनात्मवादी, क्रिया के अभाव को मानने वाला, केवल चित्त शुद्धि को आवश्यक एवं क्रिया को अनावश्यक मानने वाला किया गया है। स्थानांग सूत्र में अक्रियावादियों के 8 प्रकार बताये है।' प्रस्तुत सूत्र में इसका प्रयोग 'अनात्मवादी' और 'एकात्मवादी' दोनों अर्थों में किया गया है। इन आठ वादों में छ: वाद एकान्त दृष्टि वाले है। समुच्छेदवाद तथा नास्तिमोक्ष परलोकवाद, ये अनात्मवाद है। उपाध्याय यशोविजयजी ने धन॑श की दृष्टि से जैसे चार्वाक को नास्तिक अक्रियावादी कहा है, वैसे ही धर्मांश दृष्टि से सभी एकान्तवादियों को नास्तिक कहा है - धयंशे नास्तिको ह्यको बार्हस्पत्य प्रकीर्तितः । धर्मांशे नास्तिका ज्ञेया: सर्वेऽपि परतीर्थिका ॥' सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित वादों का तुलनात्मक अध्ययन / 385 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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