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________________ यह नियत नहीं है, किन्तु अमुक कर्म, अमुक पुरुषार्थ द्वारा, अमुक रूप में बदला जायेगा, यह नियत होता है। अर्हत् के ज्ञान में होने वाला परिवर्तन नियत है। परिवर्तन होना नियति है। किन्तु परिवर्तन करना नियति का काम नहीं है। वह पुरुषार्थ का काम है। इस प्रकार यहाँ नियति और पुरुषार्थ के समन्वय का स्वर मुखरित हुआ है। _इसिभासियाहं के 11वें अध्ययन का नाम भी मंखलिपुत्र अर्हतर्षि है, परन्तु प्रस्तुत मंखलीपुत्र का उल्लेख आजीवक मत के संस्थापक मंखलीपुत्र गोशालक से भिन्न भ. नेमिनाथ के युग से है, जो उपसंहार की गाथा में स्पष्ट है।" इस प्रकार भगवती सूत्र एवं उपासकदशा सूत्र में आजीवक मत के संस्थापक एवं सिद्धान्तों का पर्याप्त वर्णन उपलब्ध होता है। सन्दर्भ एवं टिप्पणी भगवती अभयदेव वृत्ति पत्र - 664 वही पृ. - 691 उपासक दशांग - अ. - 6 पृ. 129-130 मधुकर मुनि उवासगदसाओ - 7/19-24 वही, 7/25-26 ठाणं - 1/44 भगवई - 1/3/147-162 वही - 1/4/190 वही वही इसिभासियाई अध्ययन पत्येय बुद्ध मिसिणो वीसं तित्थे अरिष्टनेमिस्स। पासरस य पण्णस वीररस विलीण मोहरस॥ 3. आगमों में जगत्कर्तृत्ववाद का उल्लेख एवं उसका खण्डन मनुष्य ने जब से चिन्तन करना प्रारम्भ किया तब से ही उसके मन में मूल तत्त्व के प्रति जिज्ञासा बनी हुई है। इस सृष्टि का मूल तत्त्व क्या है ? यह खोज चिरकाल से चली आ रही है। 382 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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