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में पधारने की प्रार्थना की। भगवान ने उसे सद्द्बोध देने की इच्छा से वह प्रार्थना स्वीकार कर ली ।
को
भगवान कुम्भकारापण में विहार कर रहे थे। उस समय सद्दालपुत्र घड़ों 'धूप में सुखा रहा था। अनुकूल अवसर जानकर भगवान ने सद्दालपुत्र से पूछा सद्दालपुत्र ! ये घड़े कैसे किये जाते है ?
सद्दालपुत्र भन्ते ! पहले मिट्टी लाते है, उसमें जल मिलाकर रौंदते है, फिर उसमें राख या गोबर मिलाते है । फिर मृत्पिण्ड बना उसे चाक पर चढ़ाते है । इस प्रकार ये घड़े तैयार किये जाते हैं ।
भगवान - सद्दालपुत्र ! ये घड़े प्रयत्न, पुरुषार्थ तथा उद्यम से बने है या अप्रयत्न, अपुरुषार्थ और अनुद्यम से ?
सद्दालपुत्र - भन्ते ! ये सब अनुत्थान, अबल, अकर्म, अवीर्य, अपुरुषकार तथा अपराक्रम से बने है । उत्थान, कर्म, बल, वीर्य आदि का कोई अर्थ नहीं है । सब भाव नियत है । '
भगवान
सद्दालपुत्र ! तुम्हारे इन सूखते बर्तनों को कोई तोड़ दे, फोड़ या तुम्हारी पत्नी के साथ कोई बलात्कार करे तो तुम उसके साथ कैसा व्यवहार करोगे?
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सद्दालपुत्र - भन्ते ! मैं उसे दण्डित करूँगा, पीहूँगा, जान से ही मार डालूँगा । भगवान - सद्दालपुत्र ! सब कुछ नियत है, उत्थान, बल, वीर्य का कोई अर्थ नहीं, तब तुम उस व्यक्ति को दण्डित क्यों करोगे ? सब कुछ नियत और निश्चित मानने पर कोई पुरुष कुछ भी करे, उसमें उसका क्या कर्तृत्व है ? तुम्हारे मन से तुम उसे दोषी नहीं मान सकते। यदि तुम कहो कि वह व्यक्ति प्रयत्नपूर्वक वैसा करता है, तो प्रयत्न और पुरुषार्थ को सब कुछ नियत मानने का तुम्हारा सिद्धान्त मिथ्या है । '
प्रस्तुत संवाद में भगवान का पुरुषार्थवादी दृष्टिकोण स्पष्ट होता है। स्थानांग सूत्र में इसी तथ्य को स्पष्ट किया है। देव, असुर और मनुष्यों के एक समय में एक ही उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार अथवा पराक्रम होता है ।' भगवती के प्रथम शतक में महावीर और गौतम के संवाद में भी उत्थान, बल, वीर्य का अस्तित्व सिद्ध किया गया है। '
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उत्थान आदि का शब्दार्थ इस प्रकार है
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1. उत्थान
380 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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कार्य की निष्पत्ति के लिये प्रस्तुत होना ।
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