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________________ क्रियावाद की समीक्षा एकान्तक्रियावादी इसलिये मिथ्यादर्शनी है, क्योंकि वे एकान्त रूप से जीवादि तत्त्वों का अस्तित्व स्वीकार करते है। उनके अनुसार जीवादि पदार्थ है ही । जब जीव को एकान्त रूप से स्वीकार किया जाता है, तो यही कहा जा सकता है कि वह सब प्रकार से है किन्तु किसी प्रकार से नहीं है, ऐसा नहीं कहा जा सकता है । ऐसी स्थिति में जीव जैसे अपने स्वरूप से सत् है, उसी प्रकार दूसरे (घटपटादि) रूप से भी सत् होने लगेगा। ऐसा होने से जगत के समस्त पदार्थ एक हो जायेंगे । जगत के समस्त व्यवहारों का उच्छेद हो जायेगा । अतः क्रियावादियों के मन्तव्य के सम्बन्ध में शास्त्रकार कहते है कि क्रियावादियों का कथन किसी एक अंश तक ही ठीक है कि क्रिया से मोक्ष होता है, आत्मा और सुख आदि है, परन्तु वे सर्वथा है ही, इस प्रकार की एकान्त प्ररूपणा यथार्थ नहीं होने से वे मिथ्यादर्शनी है। 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 119 : अत्थिति किरियवादी य । सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा दशाश्रुतस्कन्ध, दशा - 6, सूत्र - 7 - किरियवादी यांवि भवति, तं जहाअहियवादी, अहियपण्णे, अहियदिट्ठी, सम्मावादी, नीयावादी संतिपलोगवादी, अत्थि इहलोगे अत्थि पर लोगे.... सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णा फला भवंति, दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णा फला भवति । आयारो, 1/5 - से आयावाई, लोयावाई, कम्मावाई, किरियाबाई । सन्दर्भ एवं टिप्पणी सूयगडो, 1/12/11-14 सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. 207 सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 218 सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. 213 : विज्जया चरणेण पमोक्खो भवति, न तु यथा सांख्या ज्ञानेनेवैकेन, अज्ञानिकाश्च शीलनैवैकेन । सिद्धसेनद्वात्रिंशिका - 1, कारिका 29 ठाणं, 2/40 उत्तराध्ययन सूत्र - 28/2 सूत्रकृतांग नियुक्तिगाथा (अ) सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. तत्वार्थवार्तिक भाग 2, 8/1, J. 562 206 Jain Education International - - - - 119 सूत्रकृतांग वृत्तपत्र - 218-220 1/12/15-17 सूत्रकृतांग सूत्र सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र 210-221 360 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन - (च) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 218 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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