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सूत्रकृतांग सूत्र के समवसरण अध्ययन में प्रतिपादित चार वाद तथा 363 मत
सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध में प्रतिपादित बारहवें अध्ययन का नाम समवसरण है। नियुक्तिकार ने समवसरण शब्द की विवक्षा नामादि छह निक्षेपों द्वारा की है, जिसका विस्तृत वर्णन हमने अध्ययनों के विषय-परिचय में किया
यहाँ समवसरण का अर्थ है, वाद-संगम । चूर्णिकार के अनुसार 'जहाँ अनेक दर्शनों या दृष्टियों का संगम होता है, वह समवसरण है।'2
प्रस्तुत अध्ययन की प्रथम गाथा में ही क्रियावाद, अक्रियावाद, विनयवाद तथा अज्ञानवाद का उल्लेख किया गया है। . समवायांग सूत्र में सूत्रकृतांग का परिचय देते हुए क्रियावादी आदि के 363 भेदों का केवल एक संख्या के रूप में निर्देश किया गया है।'
आगम सूत्रों में विभिन्न धार्मिक वादों का इन्हीं चार श्रेणियों में वर्गीकरण मिलता है। नियुक्तिकार ने अस्ति के आधार पर क्रियावाद, नास्ति के आधार पर अक्रियावाद, विनय के आधार पर विनयवाद तथा अज्ञान के आधार पर अज्ञानवाद का प्रतिपादन किया है।'
1. अज्ञानवाद प्रस्तुत अध्ययन की दूसरी तथा तीसरी गाथा में अज्ञानवाद का प्रतिपादन है। तीसरी गाथा के विषय में चूर्णिकार तथा वृत्तिकार का मतैक्य नहीं है। चूर्णिकार का अभिमत है कि प्रस्तुत श्लोक के दो चरण अज्ञानवादी मत के और दो चरण
समवशरण अध्ययन में प्रतिपादित चार वाद तथा 363 मत / 331
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