________________
करने वाला तथा अग्नि बुझाने वाले को अल्पकर्म करने वाला कहा है। अग्नि के प्रज्वालन में पृथ्वी, पानी, वायु, वनस्पति और त्रस इन जीवों की हिंसा है
और अग्नि जीवों की हिंसा कम है। अग्नि के विध्यापन में अग्नि के जीवों की प्रचूर हिंसा है और शेष जीवों की कम हिंसा है।"
औपपातिक सूत्र में भी बिलवासी, जलवासी, वेलवासी, चेलवासी, वल्कलवासी, जल भक्षी, शैवाल भक्षी, मूलाहारी, फलाहारी, त्वगाहारी, पुष्पाहारी, बीजाहारी, हस्तितापस आदि अनेक प्रकार के तापसों का वर्णन मिलता है।
ग्रन्थकार ने इन सभी कुशील दर्शनों की मान्यताओं का खण्डन करते हुये यह प्रतिपादित किया है कि मोक्ष न जलशौच से मिलता है, न जलभक्षण से। न हवन करने से, न वनस्पति का सेवन करने से। मोक्ष प्राप्ति के साधन हैसम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्र और तप । इनकी सम्यक साधना से ही मोक्ष प्राप्ति सम्भव
है
सन्दर्भ एवं टिप्पणी सूयगडो - 1, 3/4/1-4 सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 96 : णमी ताव णमी पव्यज्जाए, सेसा सव्वे अण्णे इसिभासितेसु। उत्तरज्झयणाणि - अ. - 9 उत्तरज्झयणाणि - भाग - 1 पृ. 106 इसिभासियाई - अ. - 23 : रामपुत्तेण अरहत्तातइसिणा बुइतं। सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 69 -: रामगुप्तश्च। उत्तरझज्यणाणि, भाग - 1 पृ. - 106 इसिभासियाई, अ. - 14 - बाहुकेण अरहता इसिणा बुइतं। महाभारत, वनखण्ड - 66/20 इसिभासियाई, अ.-36 'वित्तेण तारायणेण अरहता इसिणा बुइतं। इसिभासियाइं संग्रहणी गाथा - 5 : अद्दालए य वित्ते य। सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 96 : नारायणो नाम महर्षि। सूत्रकृतांग चू. पू. - 95 : फुटनोट नं. 8 - अत्र पाठे असिएणं इति गोत्रोक्तिर्वर्तते न पृथगृषिनाम। सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 96 : आसिलो नाम महर्षिस्तथा देविलः। उत्तरज्झयणाणि भाग - 1 पृ. - 106 महाभारत की नामानुक्रमणिका पृ. - 29
10.
11.
12.
13.
15.
16.
सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित वादों का दार्शनिक विश्लेषण / 329
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org