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का खण्डन करते है।
.. स वै एष शृगालो जायते य: सपुरीषो दह्यते। अर्थात् वह पुरुष शृगाल (सियार) होता है, जो विष्ठा सहित जलाया जाता
तथा -
गुरुं तुकृत्य हुंकृत्य, विप्रान्निर्जित्य वादतः।
श्मसाने जायते वृक्ष:, कंक गृध्रोपसेवितः॥ अर्थात् जो गुरु के प्रति तुं या हुं कहकर अविनयपूर्ण व्यवहार करता है, तथा ब्राह्मणों को वाद में पराजित कर देता है, वह मरकर श्मसान में वृक्ष होता है, जो कंक, गिद्ध आदि नीच पक्षियों के द्वारा सेवित होता है।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि त्रस एवं स्थावर प्राणियों का अपने-अपने कर्मानुसार पर्याय परिवर्तन होता रहता है। इसी तथ्य को स्मृतिकार ने भी स्वीकार किया है।
'वे मनुष्य शरीर से होने वाले कर्मदोषों के कारण स्थावर बन जाते है, वे अन्दर सुषुप्त प्रज्ञावान् तथा सुख-दु:ख से युक्त होते है।'
___वृत्तिकार ने लोकवाद की मिथ्या मान्यता का हेतु और प्रमाण पुरस्सर खण्डन किया है। वृत्तिकार के अनुसार यदि लोकवादी लोक को, पदार्थों की अपनीअपनी जाति का नाश नहीं होने से नित्य मानते है, तो इस मान्यता से तो जैनदर्शनमान्य परिणामी नित्यत्व पक्ष की ही स्वीकृति होगी परन्तु यदि वे ऐसा न मानकर पदार्थों को उत्पत्ति-विनाशरहित, स्थिर, एक स्वभाव वाले मानकर लोक को नित्य मानते है, तो यह मान्यता प्रत्यक्ष प्रमाण से बाधित है, क्योंकि जगत् का कोई भी पदार्थ उत्पत्ति-विनाश रहित, स्थिर, एक स्वभाव वाला नहीं देखा जाता। सभी पदार्थ प्रतिक्षण पर्याय रूप से उत्पन्न तथा विनष्ट होते हुए दिखायी देते है। अत: पर्यायरहित कुटस्थ पदार्थ की मान्यता सर्वथा मिथ्या है।"
लोकवादियों का यह कथन कि, 'सात द्वीपों से युक्त होने के कारण यह लोक अन्तवान् (परिमित) है' असंगत है। क्योंकि इस बात को सिद्ध करने वाला कोई भी प्रमाण नहीं है। इसी प्रकार 'पुत्रहीन पुरुष की गति नहीं होती' यह कथन भी युक्ति विरूद्ध है। यदि पुत्र के अस्तित्व से ही विशिष्ट गति की प्राप्ति सम्भव हो तब तो समस्त लोक कुत्ते और सुअरों से परिपूर्ण हो जायेगा क्योंकि इनके बहुत पुत्र होते है। पुत्र के द्वारा किये गये अनुष्ठान-विशेष से विशिष्ट गति की 320 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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