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वही, 393 सूत्रकृतांग सूत्र - 2/6/15-16 वही, 2/6/7 वही, 2/6/19 वही, 2/6/26-28 वही, 2/6/29 सूत्रकृतांग चूर्णिपृ. 428-429 - : ण लिप्पति पावबन्धेण अम्हं, एवं तावदस्माकं अपचेतनकृतप्राणातिपाते नास्ति, यद्ययिच भवानन्यो वा कश्चिन्मन्यते अनपाये अपायदेशी यथा भवंतो मांसासिन इति तत्रापि अनभिसंधित्वादेवास्माकं त्रिकरणशुद्धमासं भक्षयतां नास्ति दोषः । बुद्धस्सवि ताव कप्पति किमुत ये तच्छिष्या:? विनयपिटक, महावग्ग, भैषज्य खन्धक 6/4-8 सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 430 सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 397 (अ) सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 431-432 (ब) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 398 (अ) सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. 431-432 (ब) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र 398 सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 436 सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 398 सू. कृ. सू. - 2/6/43-45 वही, 2/6/46-47 वही, - 2/6/48-50 सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र 402 : वेदान्ताद्यात्माद्वैतमतेन व्याख्यातव्यः । पातंजल योगदर्शन - 1/24-29 सूत्रकृतांग सूत्र - 2/6/52 वही, 2/6/22-55
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7. नालन्दीय अध्ययन सूत्रकृतांग सूत्र (द्वि. श्रु.) के सप्तम तथा अन्तिम अध्ययन का नाम 'नालन्दीय' है। 'न अलं ददाति इति नालन्दा' इस व्युत्पत्ति के अनुसार न+अलं+दा इन तीन शब्दों से स्त्रीलिंगवाची नालन्दा शब्द निर्मित होता है। न तथा अलं, ये दो निषेधवाचक शब्द है, जो एक विधि को प्रकट करते है। दा अर्थात् देना, 214 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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