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हो सकता। इस प्रकार अनाचारों को जानकर उसके त्याग का वर्णन होने से प्रस्तुत अध्ययन को अनाचार श्रूत भी कहा जा सकता है।
नियुक्तिकार के अनुसार आचार तथा श्रुत का विवेचन पहले किया जा चुका है। चूर्णिकार ने इसे स्पष्ट करते हुये लिखा है कि 'आचार शब्द के निक्षेप दशवैकालिक के तृतीय क्षुल्लिकाचारकथा अध्ययन की नियुक्ति में तथा श्रुत पद का निक्षेप उत्तराध्ययन के प्रथम विनय श्रुत अध्ययन की नियुक्ति में उपलब्ध है।'
आचार के नाम, स्थापना, द्रव्य तथा भाव ये चार निक्षेप है। द्रव्य आचार अर्थात् द्रव्य का उस अवस्था में परिणमन ।
1. द्रव्य आचार के छह प्रकार है - नामन (झुकाना), धावन (धोना), वासन (सुगन्ध देना), शिक्षापण (शिक्षण), सुकरण (सरलता से रूपान्तरित करना), अविरोध-अविरूद्ध मिश्रण।
2. भाव आचार के पाँच प्रकार है - दर्शन आचार, ज्ञान आचार, चारित्र आचार, तप आचार तथा वीर्य आचार।
(1) दर्शनाचार के आठ प्रकार - नि:शंकित, नि:कांक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढदृष्टि, उपबृंहण, स्थिरिकरण, वात्सल्य और प्रभावना।
(2) ज्ञानाचार के आठ प्रकार - काल, विनय, बहुमान, उपधान, अनिह्नवण, व्यंजन, अर्थ और तदुभय।
(3) चारित्राचार के आठ प्रकार - पाँच समितियों तथा तीन गुप्तियों से प्रणिधान - योगयुक्त होना।
(4) तपाचार के बारह प्रकार - अनशन, ऊनोदरी, वृत्ति संक्षेप, रसपरित्याग, काय क्लेश, प्रतिसंलीनता रूप बाह्यतप तथा प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान, व्यूत्सर्ग रूप आभ्यन्तर तप में अग्लान तथा निस्पृह रहना तपाचार
(5) वीर्याचार - जो अपने बल तथा वीर्य का गोपन नहीं करता, जो शास्त्रोक्त विधि से आचार में पराक्रम करता है तथा अपने सामर्थ्यानुसार स्वयं को उसमें नियोजित करता है, वह वीर्याचार है।
'श्रूत' पद के चार निक्षेप है - नाम, स्थापना, द्रव्य तथा भाव। द्रव्यश्रुत - श्रुत का ग्रहण और श्रूत का निहवन करना। भावश्रुत - श्रुत में उपयुक्त-तन्मय।' प्रस्तुत अध्ययन का उद्देश्य है- साधु आचार तथा अनाचार का ज्ञाता
सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 199
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