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________________ सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. 256 : समवसरन्ति जेसु दरिसणाणि दिट्ठीओ या ताणि समोसरणाणि - 1 (अ). सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 116/117 (ब). सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 207/208 सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 18 (अ). सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 119 (ब) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 209-210 सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 121 13. याथातथ्य अध्ययन सूत्रकृतांग सूत्र के त्रयोदश अध्ययन का नाम 'याथातथ्य' है। याथातथ्य शब्द 'आहत्तहिय' का संस्कृत रूपान्तरण है, जिसका अर्थ है - यथार्थ, वास्तविक, परमार्थ, जैसा है वैसा । इस अध्ययन की प्रथम तथा अन्तिम गाथा में आहत्तहिय' शब्द का प्रयोग हुआ है। यथातथा शब्द में भाव प्रत्यय लगकर याथातथ्य शब्द बनता है। नियुक्तिकार' ने 'यथा' को छोड़कर 'तथा' शब्द का ही निक्षेप किया है। चूँकि जो यथातथ्य है, वही तथ्य है अथवा जो वस्तु का वास्तविक स्वरूप है, वही तथ्य है अथवा जो वस्तु जैसी है, उसे वैसी ही कहना तथ्य है। याथातथ्य का भी यही अर्थ है। इस दृष्टि से तथ्य शब्द के चार निक्षेप होते हैं। नाम स्थापना सुगम है। सचित्तादि पदार्थों में जिस पदार्थ का जो स्वरूप है, वह द्रव्य तथ्य है, जैसे- उपयोग जीव का, कठिनता पृथ्वी का, द्रवत्व जल का लक्षण है। इसी प्रकार चन्दन कम्बल रत्नादि का जो स्वभाव है, उसे द्रव्य तथ्य कहते है। भावतथ्य 6 प्रकार का है - 1. औदयिक - जो भाव कर्मों के उदय से उत्पन्न होता है, वह औदयिक भाव है। जैसे गति आदि का अनुभव करना औदयिक भाव है। 2. औपशमिक - जो भाव कर्मों के उपशम से उत्पन्न होता है, वह औपशमिक भाव है। जैसे कर्मों का अनुदय होना। 3. क्षायिक - जो भाव कर्मों के क्षय से उत्पन्न होता है। 4. क्षायोपाशमिक - जो भाव कर्मों के अंशत: क्षय तथा उपशम से उत्पन्न होता है। सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 161 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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