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________________ मध्याह में भावण गण्डी, अपराह्न में धर्मकथा तथा सन्ध्या में समिति का आचरण करना। वृत्तिकार ने भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों की प्रथा को गंडी समय माना है। जैसेशाक्यभिक्षु भोजन के समय गंडी का ताडन करते है। 12. भाव समय - यह अध्ययन जो क्षयोपशम भाव का उद्बोधक है। नियुक्ति के अनुसार इन निक्षेपों में से मात्र भाव समय ही प्रस्तुत अध्ययन में उपादेय है, अन्य सभी मात्र ज्ञेय है। प्रस्तुत अध्ययन 4 उद्देशकों में विभक्त है, जिसमें 88 गाथाएँ निबद्ध है। इन समस्त गाथाओं में स्वपर मत, स्वपर दर्शन, स्वपर सिद्धान्त तथा स्वपर आचार का विस्तृत प्ररुपण किया गया है। ____प्रथम उद्देशक में 27 गाथाएँ है। प्रारम्भ की 6 गाथाओं में बन्ध तथा मोक्ष का स्वरूप समझाते हुये श्रमण भगवान महावीर ने बन्धन से मुक्त होने का उपाय भी बताया है। कर्म बन्धन के मुख्य हेतु है - मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय तथा योग अथवा परिग्रह और आरम्भ आदि। मध्य की गाथा चतुष्क में सचित्त तथा अचित्त दोनों ही प्रकार के परिग्रह से मुक्त होने का सन्देश दिया गया है। परिग्रह से ममत्त्व तथा आसक्ति बढ़ती है। इसी आसक्ति के वशीभूत हुआ जीवात्मा प्राणियों का वध करता है तथा शत्रुता का सर्जन कर दुख पाता हुआ अनंत संसार बढ़ाता है। जो बाह्य तथा आभ्यन्तर दोनों परिग्रह से मुक्त होता है, वह जीव समस्त कर्म बन्धनों से मुक्त हो जाता है। छठी गाथा में “एए गंथे विउक्कम्म" पद द्वारा परसमय का निरूपण किया गया है। जो श्रमण (शाक्यभिक्षु) तथा माहण (लोकायतिक) मिथ्या अभिनिवेश या आग्रहपूर्वक अपने सिद्धान्तों से चिपके हुए हैं, वे स्वच्छन्द होकर कामभोगों का सेवन करते हुये मिथ्यात्व, अविरति आदि हेतुओं के द्वारा सदैव कर्म बंधन करते है। 7 से 27 तक की 20 गाथाओं में विभिन्न वादों के वर्णन के साथ प्रथम उद्देशक समाप्त हो जाता है। द्वितीय उद्देशक में 30 गाथाएँ है, जिसमें भी कुछ वादों का वर्णन तथा परवादी मत का निरसन पाया जाता है। तृतीय उद्देशक का प्रारम्भ श्रमण की आहार विधि से होता है कि साधु कैसा आहार ग्रहण करें, जिससे उसके आचार में निर्मलता तथा पवित्रता सदैव सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 103 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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