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अचलगच्छ का इतिहास
गुणनिधान के एक शिष्य हर्षनिधान हुए, जिनके द्वारा रचित रत्नसंचय नामक कृति प्राप्त होती है।५६
वि०सं० १६०० में गुणनिधानसूरि के निधन के पश्चात् उनके पट्टधर धर्ममूर्तिसूरि हुए। अमरसागरसूरिकृत पट्टावली के अनुसार इन्होंने षडावश्यकवृत्ति तथा गुणस्थानक्रमावरोहबृहवृत्ति की रचना की।५७ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र अपरनाम वृद्धचैत्यवन्दन और प्रद्युम्नचरित भी इन्हीं की ति मानी जाती है।५८
इनके उपदेश से विभिन्न ग्रन्थ भण्डारों का पुनरुद्धार हुआ। अनेक प्राचीन और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की प्रतिलिपियां करायी गयीं। इनके उपदेश से प्रतिष्ठापित कुछ जिनप्रतिमायें भी प्राप्त हुई हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है -
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