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________________ अचलगच्छ का इतिहास भावसागरसूरि (वि०सं० १५८३ में स्वर्गस्थ) गुणनिधानसूरि (वि० सं० १६०२ में स्वर्गस्थ) धर्ममूर्तिसूरि (वि०सं० १६७० में स्वर्गस्थ) कल्याणसागरसूरि (वि०सं० १७१८ में स्वर्गस्थ) अमरसागरसूरि (वि०सं० १७६२ में स्वर्गस्थ) विद्यासागरसूरि (वि०सं० १७९७ में स्वर्गस्थ) उदयसागरसूरि (वि०सं० १८२६ में स्वर्गस्थ) कीर्तिसागरसूरि (वि०सं० १८४३ में स्वर्गस्थ) पुण्यसागरसूरि (वि०सं० १८७० में स्वर्गस्थ) राजेन्द्रसागरसूरि (वि०सं० १८९२ में स्वर्गस्थ) मुक्तिसागरसूरि (वि०सं० १९१४ में स्वर्गस्थ) रत्नसागरसूरि (वि०सं० १९२८ में स्वर्गस्थ) विवेकसागरसूरि (वि०सं० १९४८ में स्वर्गस्थ) जिनेन्द्रसागरसूरि (वि०सं० २००४ में स्वर्गस्थ) गौतमसागरसूरि (वि०सं० २००९ में स्वर्गस्थ) गुणसागरसूरि (वि०सं० २०४४ में स्वर्गस्थ) गुणोदयसागरसूरि (वर्तमान गच्छाधिपति) अंचलगच्छ के आदिम आचार्य आर्यरक्षितसूरि द्वारा रचित कोई भी कृति नहीं मिलती और न ही इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख ही प्राप्त होता है। यही बात इनके शिष्य एवं पट्टधर यशश्चन्द्रगणि अपरनाम जयसिंहसूरि के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है, किन्तु इस गच्छ के तृतीय पट्टधर आचार्य धर्मघोषसूरि द्वारा रचित ऋषिमण्डल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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