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________________ अचलगच्छ का इतिहास १ के अन्त में गुजराती भाषा में अंचलगच्छ की भी एक पट्टावली प्रकाशित की है। ३अ इसी प्रकार The Indian Antiquary, Vol. xxiii में भी अंचलगच्छ की एक पट्टावली प्रकाशित है। ३ब अंचलगच्छ की अप्रकाशित पट्टावलियों में मेरुतुंगसरि के शिष्य कवि कान्ह (वि०सं० १४वीं शती का अंतिम चरण) द्वारा १४० कण्डिकाओं में रचित अंचलगच्छ नायकगुरुरास; कवि लाखाकृत गुरुपट्टावली (वि० सं० १६वीं शती के मध्य के आस-पास); अंचलगच्छीय लक्ष्मीचन्द्र के शिष्य लावण्यचन्द्र द्वारा रचित वीरवंशानुक्रम (वि०सं० १७६३/ई०स० १७०७) आदि उल्लेखनीय हैं। चूंकि इस गच्छ के पट्टधर आचार्यों के क्रम में कभी कोई विवाद नहीं है अत: इन सभी में अपने-अपने समय तक का समान विवरण मिलता है, जो इस प्रकार है आर्यरक्षितसूरि (वि०सं० १२३६ में स्वर्गस्थ) जयसिंहसूरि (वि०सं० १२५८ में स्वर्गस्थ) धर्मघोषसूरि (वि०सं० १२६८ में स्वर्गस्थ) महेन्द्रसिंहसूरि (वि०सं० १३०९ में स्वर्गस्थ) सिंहप्रभसूरि (वि०सं० १३१३ में स्वर्गस्थ) अजितसिंहसूरि (वि०सं० १३३९ में स्वर्गस्थ) देवेन्द्रसिंहसूरि (वि०सं० १३७१ में स्वर्गस्थ) धर्मप्रभसूरि (वि०सं० १३९३ में स्वर्गस्थ) सिंहतिलकसूरि (वि०सं० १३९५ में स्वर्गस्थ) महेन्द्रप्रभसूरि (वि०सं० १४४४ में स्वर्गस्थ) मेरुतुंगसूरि (वि०सं० १४७१ में स्वर्गस्थ) जयकीर्तिसूरि (वि०सं० १५०० में स्वर्गस्थ) जयकेशरीसूरि (वि०सं० १५४१ में स्वर्गस्थ) सिद्धान्तसागरसूरि (वि० सं० १५६० में स्वर्गस्थ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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