SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अचलगच्छ-गोरक्षशाखा अचलगच्छ की विभिन्न शाखाओं में गोरक्षशाखा भी एक है। अचलगच्छ के १५ वें पट्टधर आचार्य भावसागरसूरि (वि०सं० १५६७ - १५८३) के शिष्य सुमतिसागर इस शाखा के प्रवर्तक माने जाते हैं। इस गच्छ में हेमकान्ति, गुणसागर, पुण्यरत्न, गुणरत्न, क्षमारत्न, ज्ञानसागर, मतिसागर, जयसागर आदि कई विद्वान् मुनिजन हो चुके हैं। जैसा कि इस शाखा के नाम से प्रतीत होता है शाखा के आदिपुरुष सुमतिसागर द्वारा किसी गाय की रक्षा करने के कारण उनका शिष्य समुदाय गोरक्षशाखा के नाम से जाना गया होगा। यह शाखा कब और कहां अस्तित्त्व में आयी, इस सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं मिलती। इस शाखा के आदिपुरुष सुमतिसागर द्वारा रचित न तो कृति ही मिलती है और न ही इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख ही प्राप्त होता है। ठीक यही बात इनके शिष्य गजसागर (वि० सं० १६०३ - १६५९ ) के बारे में भी कही जा सकती है तथापि इनकी परम्परा में हुए विभिन्न रचनाकारों ने इनका सादर उल्लेख किया है। गजसागर के शिष्य गुणसागर हुए जिन्होंने अपने गुरु की स्मृति में गजसागरसूरिनिर्वाणरास १ ( रचनाकाल - वि० सं० १७वीं शती का अंतिम चरण ) की रचना की। गुणसागर द्वारा लिखित हंसाउलीरास की भी एक प्रति प्राप्त हुई है । २ गजसार के दूसरे शिष्य पुण्यरत्न हुए। इनके द्वारा रचित सनत्कुमाररास और सुधर्मास्वामीरास नामक कृतियां प्राप्त होती हैं। सनत्कुमाररास की प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा, रचनाकाल आदि का स्पष्ट उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : विधिपक्ष गच्छनउ राजा, श्री आर्यरक्षत सूरिंद रे, गुण अराणि तपगुणतिलउ सोल कला जस्यो वद रे । तस पाटिं जयसिंहसूरि धर्मघोषसूरि तास, महिंदसींह वली गुणभर्यउ, जेणइ जनना पहउचाड़ा आस । तिणइ अनुक्रमिं अवतर्या श्री सुमतिसागरसूरि सार रे, श्रीगजसागरसूरि तस तणइ, पाटिं जाणउ उदार रे । तास सीस अ जाणज्यो, पुण्यरत्नसूरि कहि रास रे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy