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________________ ११४ अचलगच्छ का इतिहास वि०सं० १६९२ में लिखी गयी दण्डकस्तवन के प्रतिलिपिकार चन्द्रकीर्तिगणि भी कीर्तिशाखा से ही सम्बद्ध मालूम होते हैं। इनके गुरु कौन थे? इस बारे में उक्त प्रशस्ति से कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती। चन्द्रकीर्तिगणि (वि०सं० १६९२ में दण्डकस्तव के प्रतिलिपिकार) वि०सं० १७२९ में लिखी गयी गोराबादलकथा अपरनाम पद्मिनीचौपाई के प्रतिलिपिकार विमलकीर्ति, ललितकीर्ति और जयकीर्ति भी इसी शाखा से सम्बद्ध जान पड़ते हैं। उक्त कृति की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि प्रतिलिपिकार के गुरु का नाम पं० मतिकीर्ति था। इन सबका पूर्व प्रदर्शित तालिका के मुनिजनों से किस प्रकार का सम्बन्ध था, ज्ञात नहीं होता। पं० मतिकीर्ति विमलकीर्ति ललितकीर्ति जयकीर्ति (वि०सं० १७२९ श्रावण वदि २ बुधवार को गोराबादलकथा के प्रतिलिपिकार) अचलगच्छ की कीर्तिशाखा का उद्भव कब, कहां और किस कारण हुआ। साक्ष्यों के अभाव में ये सभी प्रश्न प्राय: अनुत्तरित ही रह जाते है। सन्दर्भ १. श्रीपार्श्व, अंचलगच्छदिग्दर्शन, मुम्बई, १९६८ई०स०, पृ० २४५. २. वही, पृ० ३७१. 3. A.P. Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss : Muniraj Shree PunyavijayaJis Collection, L.D. Series, No.2. Ahmedabad, 1963 ____A.D.No. 168,p.98-99. ४. संवत् १६६९ वर्षे श्रीअंचलगच्छे पं० श्री क्षि (क्ष)माकीर्तिगणि-शिष्य वा० श्रीराजकीर्तिगणि-पं० श्रीगुणवर्धनगणि-शिष्य श्रुतकीर्तिलिखितं श्रीपारकरनगरमध्ये ऋषिदयाकीर्ति- ऋषिहर्षकीर्तिसहितैः। -- Ibid, No. 2812, Page 141. ५. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग २, द्वितीय संशोधित संस्करण, सम्पा०- जयन्त कोठारी, पृ० ४१. श्रीपार्श्व, पूर्वोक्त, पृ० ४०१. ६. श्रीपार्श्व, पूर्वोक्त, पृ० ४००. ७. वही, पृ० ४६७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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