SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९८ अचलगच्छ का इतिहास पद प्रदान किया गया। वि०सं० २०३२-३३ में अचलगच्छाधिराज श्रीकल्याणसागरसूरि के चतुर्थ जन्मशताब्दी के अवसर पर आपने बाड़मेर (राजस्थान) में ऐतिहासिक चातुर्मास किया और उस समय वहाँ पार्श्वनाथ जिनालय में भव्य प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन किया गया जिसमें बहुत बड़ी संख्या में आस-पास के लोगों के अलावा अन्य प्रान्तों से आये श्रद्धालुजन उपस्थित रहे। वि०सं० २०३३ में आपकी प्रेरणा से आपकी ही निश्रा में कच्छ से शत्रुजय तक का एक हजार यात्रियों का छ:रीपालता संघ निकाला गया। वि०सं० २०३६ में इनकी प्रेरणा से मुम्बई में अखिल भारतीय अचलगच्छ जैन संघ का द्वितीय अधिवेशन हुआ। आपकी प्रेरणा से अनेक जिनालयों एवं उपाश्रयों का जीर्णोद्धार, निर्माण, प्रतिष्ठा, अंजनशलाकामहोत्सव आदि सम्पन्न हुआ। आपने स्वयं अपने हाथों तथा अपनी निश्रा में अनेक प्रतिष्ठायें, अंजनशलाकायें सम्पन्न करायी। आपकी निश्रा में ही मुम्बई से शिखर जी तथा शिखर जी से शत्रुञ्जय तीर्थ का छ:रीपालक संघ निकला। शिखरजी में कच्छी अचलगच्छ भवन एवं बीस जिनालय का निर्माण हुआ। दंताणी तीर्थ का जीर्णोद्धार और प्रतिष्ठा आपने ही सम्पन्न कराया।११६ वि०सं० २०४४ भाद्रपद वदि ३ सोमवार को मध्यरात्रि में मुम्बई में नवकारमन्त्र की आराधना करते हुए आप स्वर्गवासी हुए। आपने वि० सं० १९९५ से २०४४ तक लगभग १५० मुमुक्षु पुरुषों-बालकों, महिलाओं और बालिकाओं को साधु-साध्वी के रूप में दीक्षित किया। आप द्वारा रचित बड़ी संख्या में विभिन्न कृतियाँ प्राप्त होती है जिनकी सूची परिशिष्ट-१ में दी गई है। आचार्य गुणोदयसागरसूरि आपका जन्म वि०सं० १९८८ भाद्रपद सुदि १५ को कोटडा नामक स्थान पर हुआ। आपके पिता का नाम गणशी भाई और माता का नाम सुन्दर बाई था। बचपन का इनका नाम गोविन्दभाई था। वि०सं० २०१४ माघ सुदि १० को लालबाड़ी, मुम्बई में आपने २१ वर्ष की आयु में गुणसागरसूरि से दीक्षा ग्रहण की और वि०सं० २०३३ वैशाख सुदि ३ को मुम्बई के मकड़ा नामक स्थान पर आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किये गये। वि०सं० २०४४ में आचार्य गुणसागरसूरि के निधन के उपरान्त आप सफलतापूर्वक सम्पूर्ण संघ की जिम्मेदारी वहन कर रहे हैं। आपने अपने हाथों १०० मुमुक्षुओं को दीक्षा प्रदान की। आपकी निश्रा में कई छरी पालित संघ निकल चुके हैं। विभिन्न स्थानों पर आपकी प्रेरणा से प्राचीन जिनालयों का जीर्णोद्धार व नूतन जिनालयों का निर्माण, अंजनशलाका प्रतिष्ठा आदि सम्पन्न हुए हैं। आपने स्वयं भी अपने वरदहस्त से कई स्थानों पर प्रतिष्ठा, अंजनशलाका आदि धार्मिक कृत्यों को सम्पन्न कराया है। आपके कुशल नायकत्व में अंचलगच्छ का चतुर्दिक विकास हो रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy