SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अचलगच्छ का इतिहास ९७ में दादा कल्याणसागरसूरि की प्रतिमायें प्रतिष्ठापित की गयीं। वि०सं० २००४ में श्रीपूज्य जिनेन्द्रसागरसूरि के निधनोपरान्त यति-गोरजी की परम्परा समाप्त हो गयी और वि०सं० २००८ माघ सुदि १३ को रामाणीया में संघ के अत्यधिक आग्रह से आपने आचार्य और गच्छनायक पद स्वीकार किया। ____ आपकी प्रेरणा से भुज, मांडवी, जामनगर आदि स्थानों पर बड़े ज्ञान भण्डारों की स्थापना हुई और पंचप्रतिक्रमणसूत्र, अणगारप्रतिक्रमणसूत्र, उपदेशचिन्तामणिसटीक, प्रबोधचिन्तामणि, कल्याणसागरसूरिरास, वर्धमानपद्मसिंहश्रेष्ठिचरित्र, कल्याणसागरसूरि पूजादिसंग्रह, बड़ीपट्टावली भाषांतर, श्रीपालरास आदि गच्छोपयोगी ग्रन्थ प्रकाशित हुए। वि०सं० २००९ वैशाख सुदि १३ को भुज में आपका स्वर्गवास हुआ११५ तत्पश्चात् गुणसागर जी आपके पट्टधर बने। आचार्य गुणसागरसूरीश्वर जी म० सा० आपका जन्म वि०सं० १९६९ माघ सुदि २ शुक्रवार को देढ़ीआ-कच्छ प्रान्त में हुआ। आपके पिता का नाम श्री लालजी और माता का नाम धनबाई था। बचपन का इनका नाम गांगजी भाई था। माता की प्रेरणा और पूज्य सन्तों के संसर्ग एवं जैन ग्रन्थों के अध्ययन से इनकी वैराग्यभावना प्रबल हुई और वि० सं० १९९३ चैत्रवदि ९ को देढ़ीया में दीक्षा ग्रहण कर ली और अचलगच्छाधिपति गौतमसागरसूरि के शिष्य नीतिसागर जी महाराज के शिष्य बन कर मुनि गुणसागर नाम प्राप्त किया। दीक्षोपरान्त इन्होंने व्याकरण, छंद, अलंकार, न्याय, ज्योतिष आदि शास्त्रों तथा जैन आगमों का अल्प समय में खूब अभ्यास कर डाला और दादा गुरुदेव के कृपापात्र बने। इनके ज्ञान-चारित्रादि से प्रभावित होकर दादा गुरुदेव ने वि०सं० १९९८ में इन्हें मेराउ (कच्छ) में उपाध्याय पद प्रदान किया और वि०सं० २००३ में अपने आज्ञावर्ती साधु-साध्वियों को इनकी निश्रा में सौंप दिया। सं० २००९ में दादागुरुदेव का निधन हो गया और आपके गुरु नीतिसागर जी वि०सं० १९९९ में ही कालधर्म को प्राप्त हो गये थे अतः सम्पूर्ण संघ की जिम्मेदारी आप पर आ गयी। वि०सं० २०११ में आप मुम्बई पधारे जहाँ संघ ने सूरिपद से आपको अलंकृत किया। वि०सं० २०१७ में आपश्री के अथक प्रयास से मेराउ (कच्छ) में श्री आर्यरक्षित जैन तत्त्वज्ञान विद्यापीठ की स्थापना हुई। वि०सं० २०२४ में आपकी प्रेरणा से भद्रेश्वरतीर्थ-कच्छ में अखिलभारतीय अगचलगच्छ चतुर्विध जैनसंघ का प्रथम अधिवेशन हुआ जिसकी आपने ही अध्यक्षता की। वि०सं० २०३० में आपकी प्रेरणा से कल्याण-गौतम-नीति जैन तत्त्वज्ञान श्राविका विद्यापीठ की मेराउ (कच्छ) में स्थापना हुई। आपकी निश्रा में देढ़ीया से भद्रेश्वरतीर्थ के लिये छरी पालक संघ निकाला गया। भद्रेश्वर तीर्थ में ही उक्त अवसर पर समस्त उपस्थित संघों द्वारा आपको गच्छाधिपति For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy