SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अचलगच्छ का इतिहास प्रतीत नहीं होता। श्रेष्ठी केशव जी नायक ने गिरनार और सम्मेतशिखर पर भी जिनालयों का जीर्णोद्धार कराया। इसी समय अंचलगच्छ के ही एक अन्य श्रेष्ठी भीमशी माणेक ने जैन साहित्य के प्रकाशन/मुद्रण में सराहनीय योगदान दिया। उनके इस कार्य में केशवजी नायक ने भी खूब सहायता दी। केशवजी की धर्मपत्नी और पुत्र ने भी धार्मिक कार्यों में विपुलद्रव्य व्यय किया। वि०सं० १९२८ में आचार्य रत्नसागर जी का निधन हुआ।११२ वि० सं० १९१५ से १५२७ तक के विभिन्न अभिलेखों में रत्नसागरसूरि का नाम मिलता है, जिसका विवरण निम्नानुसार हैक्र. वि० सं० माह-तिथि-वार प्राप्तिस्थल संदर्भ ग्रन्थ १. १९१५ माघ सुदि ५ सोमवार जीरावलापार्श्वनाथ अंले.सं., लेखांक जिनालय, तेरा-कच्छ ८८३ २. १९१५ माघ सुदि ५ सोमवार वही वही, लेखांक ८८४ ३. १९१६ ज्येष्ठ सुदि १३ शुक्रवार सुपार्श्वनाथ जिनालय वही, लेखांक ८८५ अंजार, कच्छ ४. १९१८ माघ सुदि ५ सोमवार । अष्टापद जिनालय, वही, लेखांक ८८६ नालिया, कच्छ ५. १९१८ माघ सुदि ५ सोमवार । जैनमन्दिर, वडसर, वही, लेखांक ८८७ कच्छ ६. १९१८ माघ सुदि १३ बुधवार शांतिनाथ जिनालय, वही, लेखांक ८८८ कोठार, कच्छ १३ बुधवार आदिनाथ जिनालय, वही, लेखांक ८८९ वारापधर, कच्छ ८. १९२१ माघ सुदि ७ गुरुवार । नरशी केशव जी वही, लेखाक ८९१ ट्रॅक, शत्रुञ्जय ९. १९२१ माघ सुदि ७ गुरुवार नरशी केशव जी वही, लेखांक ८९२ ट्रॅक, शत्रुञ्जय १०.१९२१ माघ सुदि ७ गुरुवार नेमिनाथ जिनालय, वही, लेखांक ८९३ शत्रुञ्जय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy