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________________ गुणसागरसूरीश्वर जी के निधन के पश्चात् उनके शिष्य आचार्य गुणोदयसागर जी के नेतृत्व में यह गच्छ उत्तरोत्तर विकास के पथ पर अग्रसर है। प्रो० एम०ए० ढांकी, शोध निदेशक, अमेरिकन इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डियन स्टडीज, वाराणसी (वर्तमान में गुड़गाँव-हरियाणा) की प्रेरणा एवं सहयोग तथा प्रो०सागरमल जैन के निर्देशन में पार्श्वनाथ विद्यापीठ में रहते हुए मैंने श्वेताम्बर गच्छों के इतिहास लेखन का कार्य प्रारम्भ किया और पिछले १७ वर्षों में इस कार्य को एक सीमा तक पूर्ण करने का प्रयास किया, जिसका एक बड़ा भाग देश की प्रतिष्ठित शोध-पत्रिकाओं में प्रकाशित है। अचलगच्छ के इतिहास के लेखन में मुझे प्रो०एम०ए० ढ़ांकी, प्रो०सागरमल जैन, साहित्य महारथी श्री भंवरलाल जी नाहटा, महोपाध्याय विनयसागर जी आदि से जो सहयोग मिला उसे शब्दों में व्यक्त कर पाना मेरे लिये कठिन है। आचार्य कलाप्रभसागर जी से मुझे न केवल समय-समय पर मार्गदर्शन मिला बल्कि उन्होंने इस गच्छ से सम्बद्ध अनेक दुर्लभ ग्रन्थों को मुझे उपलब्ध कराया जिससे लेखन कार्य में अत्यधिक सहायता मिली। प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन का पूर्ण श्रेय पूज्य आचार्यश्री कलाप्रभसागरसूरीश्वर जी म०सा०, मुम्बई विश्वविद्यालय के गुजराती भाषा विभाग के पूर्व अध्यक्ष एवं सुप्रसिद्ध विद्वान् प्रो० रमणलाल ची० शाह; पार्श्वनाथ विद्यापीठ के मानद् निदेशक प्रो० सागरमल जैन; वर्तमान निदेशक प्रो० भागचन्द्र जैन तथा प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर के निदेशक महोपाध्याय विनयसागर जी को है, अत: मैं इन सभी का हृदय से आभारी हूँ। शिवप्रसाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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