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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास करती थी। चौदह वर्ष की उम्र में रात्रि भोजन का त्याग किया तथा ३५ वर्षों से अपशब्द निकलने पर अगले दिन सम्पूर्ण विगय का त्याग करती थी । सप्ताह में दो बार स्नान तथा साधुवत् अल्प पानी में वस्त्र प्रक्षालन करती थी, प्रियधर्मी सुसंस्कारी आपकी चार पुत्रियाँ तथा दो पौत्रियों ने दीक्षा अंगीकार की । कुल आठ पुत्रियां तथा जय विजय दो भाई थे । आप दढ़धर्मी श्राविका थी । आचार्य महाप्राज्ञजी ने आपको श्रद्धा की प्रतिमूर्ति के नाम से संबोधित किया था। आपने सैंकड़ों उपवास ४१ बेले, ११ तेले, ५ चोले, ५ पचोले, १.११ तक की लड़ी, ४ वर्ष एकासन तप, १ पंद्रह, २ बार २५० प्रत्याख्यान किये हैं। अंतिम समय में सघारे सहित स्वर्गवास हुआ। अंतिम पांचवे दिन दीक्षा अंगीकार की तथा समाधिमरण प्राप्त किया । १४७ ७. १५५ श्रीमती तारादेई जैन : 671 श्री पी. एल. जैन, अमतसर वाले (प्यारे लाल जैन) की आप धर्मपत्नी थी। आपका जन्म १६२१ (लांगा परिवार) में हुआ था। आप श्रीमती जूनी देवी एवं श्री फग्गामल जैन की सुपुत्री थी। आपके ससुर श्रीमान् देवचन्द जी जैन स्यालकोट वाले कहलाते थे । आपने तप त्याग को प्राथमिकता देते हुए कई वर्षों से शील व्रत अंगीकार किया हुआ था। सभी फलों का त्याग, कन्दमूल का त्याग ४० से ऊपर तप की लड़ियां ६ ५४, ३२, १ व्रत, आयंबिल ओली तप, भगवान पार्श्वनाथ तप लड़ी, अष्टमी पक्खी को पौषध व्रत, महामंत्र -- नवकार, तीर्थंकरों की संस्तुति आदि कर्म निर्जरा हेतु संपन्न की। आपके आदर्श हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे। आपकी तरह ही आपकी सुपुत्री ने एक ही चातुर्मास में दो मासखमण तप संपन्न किए। आपके द्वारा प्रदत्त धर्मसंस्कारों से जयपुर निवासी श्रीमती चाँद रानी सुशील जैन के पूरे परिवार में धर्मध्यान की बलवती भावनायें नज़र आती हैं। आपके छः पुत्र है श्री अजित जैन, श्री पवन जैन, श्री दर्शनलाल जैन, श्री सुरेन्द्र कु० जैन, श्री राज कु० श्री सुशील जैन कुमार तथा दो पुत्रियाँ चाँद और सूरज हैं। आपका देवलोक २१ अप्रैल २००१ को रूप नगर दिल्ली में हुआ । १४८ ७.१५६ श्रीमती धुड़ी देवी : सुश्राविका श्रीमती धुड़ी देवी मालू का ६५ वर्ष की लम्बी आयु में स्वर्गवास हो गया। आप धार्मिक कार्यों में सबसे आगे रहती थी । ८५ वर्ष की लम्बी आयु में धर्म स्थान में आकर सामायिक व प्रतिक्रमण की आराधना करती थी। आपका १६ वर्ष की उम्र में विवाह हो गया था । विवाह के कुछ माह बाद ही आपके पति श्री हीरालाल जी मालू का स्वर्गवास हो गया था। पति विछोह के बाद आयु के अन्तिम साँस तक दान, शील, तप और भावना को ही जीवन का आधार बनाए रखा ।१४६ ७. १५६ श्रीमती रतन देवी जी मेहता : आप उदयपुर (राज०) निवासी श्रीमान् जीतमल जी मेहता (हरडिया मेहता) एवं श्रीमती कंचनबाई मेहता की पुत्री तथा स्वाध्यायी श्रीमान् आनंदीलाल जी मेहता की धर्मपत्नी एवं मं० सा० विजय श्री जी आर्या तथा मं० सा० प्रियदर्शना जी की मातेश्वरी हैं। आपकी सासु जी महासती चंद्रकंवर जी म.सा. थे । (पूर्व नाम श्रीमती लहर बाई जी) एवं ससुर जी श्रीमान् पन्नालाल जी मेहता थे। आपकी जैन धर्म में दीक्षित ननंद - महासती श्री चंद्रावती जी थी। श्रीमती रतन देवी जी परम सेवा भावी, अत्यंत नम्र स्वभावी मदुभाषी, दढ़ धर्मी, प्रिय धर्मी, तपस्विनी पतिव्रता सन्नारी हैं। आपने दो अठाई, अनेकानेक आयंबिल ओली, गौतम स्वामी का एकासना १२ माह तक प्रतिमाह एकासना, कष्ट तेला दो रस तेला (५ तेला), २७ वर्ष तक वर्षीतप किया है। मान बेला मेरू तप २४ तीर्थंकरों की ओली उपवास एवं आयंबिल के साथ संपन्न की है। आपकी छः पुत्रियाँ हैं, सभी धर्म ध्यान व तप, त्याग में अग्रणी हैं। दो दीक्षित हैं महासाध्वी श्री विजय श्री जी म. सा. "आर्या" व महासाध्वी श्री प्रियदर्शना जी म.सा. 'प्रियदा' आपके परिवार में अब तक नौ मुमुक्ष आत्माओं ने संयम ग्रहण करके स्व-पर का कल्याण किया है। वर्तमान में आप गुजरात में आगास आश्रम में रहकर धर्म जागरण में लीन हैं। हम आपकी लम्बी आयु तथा उत्तम स्वास्थ्य की मंगल कामना करते हैं ।५० आपकी दोहित्तियाँ भी जिन शासन के संयम पथ की साधिकाएं हैं वे हैं पू. श्री विजयलताजी 'प्रेरणा' म० सा० विचक्षणा श्री जी म० सा०, नवदीक्षिता श्री प्रशंसा जी म० सा० । ७. १५७ श्रीमती देवकी बाई भंसाली : आप चांदनी चौंक दिल्ली निवासी श्रीमान् धन्नालाल जी भंसाली की धर्मपत्नी थी। आपकी उम्र ८५ वर्ष की थी। आपने बहुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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