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________________ आधुनिक काल की जैन श्राविकाओं का अवदान तप किया। विक्रम संवत् २०२१ में मासखमण की तपस्या, साथ में बीस स्थानक की ओली चालु की। १ से २१ तक की लड़ी भी की। जोड़े से ६ की तपस्या भी की। १९८७ में दो वर्षी तप आपने दोनों पोतों के होने पर किया। १६८६ में मासखमण किया। १६ शास्त्रों की वाचनी व ५०.६० थोकड़े सीखें । २४ तीर्थंकरों की २४ ओली की, ११ गणधरों की ग्यारह ओली, एक धर्म चक्र, २४ तीर्थंकर के भव के उपवास, भ० पार्श्वनाथजी के १०८ उपवास, नवकर वाली के १०८ उपवास, नवकार मंत्र के अक्षर के ६८ उपवास, ५ मेरू जिसमें एक-एक करके ६ उपवास ५ बेले किये हैं। ५.६ बार अठाई, व सिद्धितप, सर्वतोभद्र तप, ३५ उपवास, ३४ उपवास की तपस्या, ब्रह्मचर्य का नियम एवं वर्षीतप की तपस्या निरन्तर चल रही है। प्रतिदिन १६.१७ सामायिके एवं २ सूत्रों का स्वाध्याय चलता है। इस प्रकार आपका जीवन तप-जप तथा स्वाध्याय की त्रिवेणी का संगम है ।१४२ ७.१५० श्रीमती फुटरी बाई धोका : आप आदोनी (महाराष्ट्र) निवासी दानवीर श्रेष्ठी इंदरचंद्र जी धोका की धर्मपत्नी थी। आपने पालीताणा में मासखमण (३० उपवास) तप की अराधना की, छ: वर्ष तक वर्षीतप की तपस्या की, अनेक पखवाड़ा तथा मास खमण किये। आपने अनेक तीर्थ यात्राएँ की, व्रतों का पालन किया तथा ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया। आपने धर्मशालाओं चिकित्सालयों के निर्माण में अपने पति का सहयोग दिया। आपके नाम से भोजनशाला भी प्रारंभ करवाई गई। आपके सुपुत्र श्री धर्मराजजी है।१४३ ७.१५१ श्रीमती सायरबाई जी : __ आप नासिक (महाराष्ट्र) निवासी श्रीमान् फत्तेचंदजी बोरा की धर्मपत्नी हैं। आपने ३२ वर्ष की अल्पायु में ही ब्रह्मचर्य व्रत को ग्रहण किया। २७ वें वर्ष में सचित पानी और रात्रि भोजन का नियम ग्रहण किया। २ वर्ष तक बिना नमक का आयंबिल किया, २ वर्ष तक विगय रहित अनाज वाला एकासन वर्षीतप किया तथा ६ वर्ष निरन्तर एकासन तप किया। लगभग १२ वर्षों से वर्षीतप चल रहा हैं। नियमित रूप से आप प्रतिदिन सात सामायिक तथा १००० गाथाओं का प्रतिदिन स्वाध्याय करती हैं। आपने १२५० लोगस्स का ध्यान उपसर्गहर स्तोत्र का जप भी संपन्न किया है। इस प्रकार आपका जीवन जप-तप, स्वाध्याय एवं शील का भंडार ७.१५२ श्रीमती धरमजय जैन : आप बलाचोर (पंजाब) निवासी श्रीमान् बनारसीदास जैन की सुपुत्री हैं। आपकी उम्र ७७ वर्ष की है। आप बाल ब्रह्मचारिणी हैं। १७ वर्ष की आयु में आपने कच्ची पक्की का त्याग पं शुक्लचंद जी मा. सा. से ग्रहण किया। रतन देई जी मा. सा. से आजीवन ब्रह्मचर्य का नियम ग्रहण किया। १८वें वर्ष से ही आपने सफेद वस्त्र पहनने शुरू कर दिए थे। तथा आभूषण पहनने का भी त्याग कर दिया था। आपने घर के मोह का त्याग कर दिया। एकांत साधना में ही अपना समय व्यतीत किया करते हैं। आपने तप के क्षेत्र में भी अपने कदम बढ़ाए। ११ व्रत, ११ अठाईयां, आयंबिल की ३ ओली संपन्न की २१ वर्षों से दीवाली का तेला करती आ रही है। आपने वर्षीतप तथा सवा लाख नवकार मंत्र का जाप भी संपन्न किया। आप प्रतिदिन पांच सामायिक करती हैं तथा दान पुण्य में भी पीछे नहीं रहती हैं।१४५ ७.१५३ श्रीमती सोनादेवी जैन : __ आपका जन्म ई. सन् १६१६ में हुआ था। आप श्रीमान् लाला मनफूलजी जैन हिसार (हरियाणा) की धर्मपत्नी हैं। आपने हिसार में धर्मस्थानक के निर्माण में सहयोग दिया । ८५ वर्षों तक निरन्तर अठाई तप एवं चातुर्मास में एकांतर तप करती हैं। वर्तमान में एकासने से रत्नावली तप कर रही हैं। प्रतिवर्ष तेले कई बेले चोले आदि तप संपन्न करती हैं। आपके दो पुत्र हैं। भारतभूषण जी (हिसार) स्वदेशभषण जी ण जी (दिल्ली) में रहते हैं। आपकी दो सुपुत्रियां ऊषा जी एवं आशा जी दिल्ली में रहती हैं।१४६ ७.१५४ सुमित्रा देवी जैन (हांसी हरियाणा) :___आपका जन्म ई.सन् १३.१.१६२७ को हुआ था। आपकी सुपुत्री श्रीमती प्यारी देवी नानक चंद जी जैन (टाकी वाले) एवं पुत्रवधू श्रीमती नारी खूबराम जैन है। आपके पति श्रीमान् किशोरीलाल जी जैन (हाँसी) हैं। आप प्रतिदिन एक हज़ार गाथाओं का स्वाध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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