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________________ 666 आधुनिक काल की जैन श्राविकाओं का अपदान हुक्मीचंद जी चोरड़िया की धर्मपत्नी हैं। आपका जन्म पूना जिला के मंचर क्षेत्र में सन् १६३३ में हुआ था। आपने छठी कक्षा तक शिक्षा ग्रहण की है। किंतु शिक्षा के प्रति आपका अत्यधिक लगाव था। जापने अपने चारों पुत्रों को उच्च शिक्षा दी। ५ किलो मसाला बनाकर स्वतंत्र व्यवसाय प्रारंभ करने में अपने पति को सहयोग दिया। अपने कौशल से उत्पादकता बढ़ाई। आज चालीस वर्षों में ४० करोड़ के टर्न ओवर से यह उद्योग फला फूला है। सात कारखाने, ६०० कार्य सेवक, व स्वतंत्र निर्यात विभाग सहित यह व्यवसाय फैला है। चोरड़िया फुड, प्रवीण फुड, प्रवीण मसाले, युनिवर्सल स्पाइसेस इनकी कंपनी के नाम हैं। साथ ही समाज सेवा में आप अग्रसर हैं। अपने स्वर्गीय सासु जी की पुण्यतिथि पर आप प्रतिवर्ष रक्त दान कैम्प का आयोजन रखते हैं । १२८ ७.१३६ श्रीमती पानी बाई बाफना : __ आप चेन्नई निवासी श्रीमान पुखराज जी कठोड़ एवं पुरसवाल कठोड़ की सुपुत्री, कोलार निवासी श्रीमान् रिखबचंद जी बाफना की पुत्रवधू एवं श्रीमान् जयचंद जी बाफना की धर्मपत्नी हैं। आप कर्मठ स्वतंत्रता सेनानी तथा समाज सेवी थी। आपके चार पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं। आपके पति श्रीमान् जयचंद जी बाफना भी स्वतंत्रता सेनानी थे। सन् १६३०.४० में पानी बाई ने धूंघट प्रथा का त्याग कर दिया था। राजस्थानी श्वेतांबर समाज में क्रांति लाने वाली संभवतया यह प्रथम महिला थी। यद्यपि आज इस समाज में ६० वर्षों के पश्वात् वही परिवर्तन आ चुका है। पानी बाई में उत्साह, धैर्य एवं देश भक्ति कूट-कूट कर भरी हुई थी। स्वतंत्रता सेनानी के अग्रगण्य नेताओं जैसे एस. निजलिंगप्पा, के.सी. रेड्डी, एच.सी. दासप्पा, के. टी. भाष्यम् आदि को आहार एवं निवास व्यवस्था प्रदान करने के फलस्वरूप आपको पुलिस द्वारा अनेक यातनायें सहन करनी पड़ी। आगे चलकर निजलिंगप्पा ने कर्नाटक को एकता दी एवं मुख्य मंत्री नियुक्त किये गये। पानी बाई ने पदम्नी एम. सी. मोर्दः जो हज़ारों फ्री ऑपरेशन करनेवाले नेत्र विशेषज्ञ थे, उन्हें महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया। आपने भारतीय सेवा दल के प्रधान पद पर रहते हुए, सेवादल के कार्यकर्ताओं के संग अनेक शिविर ग्रामों में सड़क निर्माण हेतु लगाए। अपने प्रथम प्रधानमंत्री श्रीमान् राजेंद्र प्रसाद जी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, डॉ बी. आर. अम्बेडकर को उनकी के. जी. एफ. यात्रा पर अपने हाथों से भोजन बनाकर खिलाया। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् पानी बाई के. जी. एफ. में सहयोग आंदोलन को ऑपरेटिव बैंक तथा होलसेल कोऑपरेटिव सोसाईटी की डायरेक्टर (मार्गदर्शक) पद पर नियक्त की गई थी। आप के. जी. एफ. महिला समाज की संस्थापिका थी। जिसका उद्देश्य बच्चों एवं महिलाओं को शिक्षित करना था। सन १६५० में कर्नाटक सरकार संचालित कोलार जिले के सोशल वेलफेअर बोर्ड के चेअरमैन के पद पर आप नियुक्त की गई आप गाँवों में जाने के लिए प्रातः काल निकलती थी तथा देर रात तक इस संस्था से जुड़े ग्रामों की देख भाल करती थी। उन दिनों में सड़क परिवहन की व्यवस्था न होने से गाँवों में सेवाएँ प्रदान करना कठिन कार्य था। तथापि आप सोमवार से शनिवार तक ग्रामीण बहनों में स्वावलंबन की प्रवत्तियों को बढ़ाने तथा बच्चों को पौष्टिकता प्रदान करने हेतु दूध तथा अन्य वस्तुएँ ले कर जाती थी, उन्हें खिलौने आदि भी दिये जाते थे। उनमें शिक्षा अर्जन करने हेतु प्रेरणा एवं उत्साह भरा जाता था। के. जी. एफ के जनरल अस्पताल में एवं मेटरनटी अस्पताल में आप गरीबों की सुचारू देखभाल करती थी। इस प्रकार के कई अन्य जन कल्याणकारी कार्यों की संपन्नता की संगम है पानी बाई । स्वयं दमे की विमारी से ग्रस्त होते हुए भी आपने समाज को बखूबी निभाया। इन सभी कार्यों की संपन्नता में उनके पति श्रीमान् जयचंदजी बाफना का पूरा-पूरा सहयोग रहा। पानी बाई का स्वर्गवास २८.०५.७८ को हुआ था।१२९ ७.१३७ श्रीमती मंगला श्री श्रीमाल: ___ आप हैदराबाद निवासी स्व. श्रीमान् सिताबचंद जी श्रीमाल की पुत्रवधू, श्रीमान् जयचंद जी एवं पानी बाई बाफना (दोनों स्वतंत्रता सेनानी) की सुपुत्री हैं। आपका जन्म २६ मार्च १६४४ में हुआ था। आपके चार भाई एवं एक छोटी बहन डॉ सरोज जैन है। के. जी. एफ. में आपने दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई की। माता-पिता ने तथा आपने बी.एस.सी. की पढ़ाई के लिए बैंगलोर होस्टल में रहने का निर्णय लिया। उस समय में जबकि लड़कियों को चौथी या सातवीं कक्षा से अधिक नहीं पढ़ाया जाता था। वह जैन श्वेतांबर राजस्थानियों में कर्नाटक की संभवतः प्रथम स्नातक छात्रा थी। उनका विवाह सन १६६७ में हआ था। आपके एक पत्र एवं एक पुत्री है। आप रोगी सहायता ट्रस्ट के तहत रोगियों की सेवा करती रही। अपने पति द्वारा खोले गये भगवान् श्री महावीर विकलांग केंद्र द्वारा विकलांगों को कृत्रिम पैर प्रदान करवाती रही। पोलियों के रोगियों के लिए भी कई शिविर लगवाए। करीब दस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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