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जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास
तरह धापूबाई ने अनेक बहनों के साथ स्थानक में रहकर ६१ दिन की तपस्या संपन्न की थी । धापूबाई की प्रेरणा से लसड़ावन में स्थानक भवन का निर्माण हुआ । आप बड़ी ही साहसी सन्नारी थी। एक बार रेलवे स्टेशन पर मिलिटरी के एक युवक ने दो तीन बार टल्ला मारा, उसी समय आपने चप्पल से उसकी खूब पिटाई की। आखिरकर कर्नल ने आकर उनसे माफी मांगी। बेंगलोर में आप खूब रूतबा रखती थी। दिल्ली में डॉक्टरों ने इनका पूरा पेट चेक किया था, इनकी पूरी नसें सिकुड़ चुकी थी । श्रीमती धापूबाई बड़ी यशस्विनी, धर्मशीला, धैर्य और विवेक की धनी, सम्माननीया, श्रद्धा और भक्ति की प्रतिमूर्ति थी। आपका आत्मबल, • आत्मतेज, शौर्य, आन बान और शान दर्शनीय था। आप जो ठान लेती थी उसे पूरा कर देती थी । कर्त्तव्य, सेवा और धर्म साधना पर बलिदान होनेवाली आप एक यशस्विनी श्राविका थी । १६ वीं से २० वीं शताब्दी की जैन श्राविकाओं में अकबर के शासन में चम्पा बहन ने छः मास की तपस्या की थी। तत्पश्चात् धापूबाई ने ही १११, १२१, १५१ आदि का दीर्घ तप संपन्न किया था । उस समय यह दीर्घ तप एक महान् आश्चर्य था । आपने १११ जैसे दीर्घ तप में भी गुरू दर्शन यात्राएँ की । देश भर में आपको विविध प्रकार का सम्मान प्राप्त हुआ था। आपका १५.१२.१६८६ में हृदयघात से स्वर्गवास हुआ। आपकी अन्तिम यात्रा ट्रक में भव्य मंडप सजाकर जुलूस द्वारा निकाली गयी। जुलूस में चार साढ़े चार हज़ार नर नारियों के बीच गुलाल उड़ाते हुए तथा हज़ारों रूपए बिखेरते हुए आपको ले जाया गया।
दिल्ली में आपका नागरिक अभिनंदन समारोह संपन्न हुआ। प्रधान जी मोरारजी देसाई ने भावभीना स्वागत किया। तीन प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई। देश-विदेश के समाचार पत्रों में खबरें एवं उनकी जीवनी प्रकाशित हुई। इंदिरा गांधी ने अपने निवास पर आमंत्रित कर अपने हाथ से काती हुई सूत की माला पहनाकर धापूबाई के चरण छुए थे । विश्वधर्म सम्मेलन में पूज्य सुशील मुनि जी म. सा. ने आपको सम्माननीय स्थान प्रदान किया। अहमदनगर में आचार्य आनंद ऋषि जी म०सा० के सान्निध्य में लोगों ने चांदी के रथ में आपकी जुलूस यात्रा निकाली। विविध संघों ने इन्हें शासन प्रभाविका, वीर पुत्री, तपरत्ना, तप वीरांगना, तपकेसरी व जगत् माता की उपाधि से अलंकत किया । १२५ T
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७. १३३ श्रीमती सरोज पुनमिया
आप बेंगलोर निवासी श्रीमान् कांतिलाल पुनमिया की धर्मपत्नी हैं तथा मुंबई निवासी श्रीमान् पथ्वीराज जी राजावत की पुत्री हैं। आपका जन्म १५.१.१९५४ को देसुरी (राज०) में हुआ था। मुंबई में आपने ७ वीं कक्षा तक की शिक्षा ग्रहण की थी । आपने धार्मिक शिक्षण के रूप में तत्वार्थसूत्र, अनेक थोकड़े एवं सूत्रों का ज्ञान प्राप्त किया। मामा जी छगनलाल नवरत्नमल बंब जैन धार्मिक पाठशाला एवं श्री कर्नाटक जैन स्वाध्याय संघ के तत्वावधान में बेंगलोर शहर के विभिन्न उपनगरों एवं बाज़ारों में धार्मिक शिक्षण एवं महिला मंडलों का संचालन कर रही हैं। आप स्पष्ट एवं उच्च कोटि की वक्ता, चिंतनशील, श्राविका व्रतों को स्पष्ट करने तथा विशद व्याख्या करने की कला में निपुण हैं। गत तीन वर्षों से निरन्तर एकांतर तप कर रही हैं। आपने छोटे बड़े अनेक तप तथा त्याग प्रत्याख्यान ग्रहण किये हैं। आप लौकिक एवं लोकोत्तर दोनों क्षेत्रों में विशेष उन्नतिशील सुश्राविका रत्न हैं । १२६ ७. १३४ श्रीमती बदनीबाई सिंघवी :
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आप बैंगलोर निवासी श्रीमान् केसरीमल जी एवं रूपी बाई की पुत्रवधू एवं जुगराजजी सिंघवी की धर्मपत्नी हैं। श्रीमान् राजमलजी एवं श्रीमती छकुबाई संचेती की पुत्री हैं व सिकंद्राबाद निवासी श्रीमान् कानमल जी संचेती की बहन हैं। आपने छोटी उम्र से ही तपस्या का मार्ग अपनाया। आपने तीन वर्षीतप अठाई, ग्यारह एक माह के आयंबिल, सात वर्ष निरंतर एकासन तप, आयंबिलों की ओलियाँ २५० प्रत्याख्यान्, कल्याणक तप, रोहिणी तप, पुष्य नक्षत्र तप आदि संपन्न किये हैं तथा प्रतिदिन एकासना, बियासना, चौविहार तप, हरी वनस्पति का त्याग तथा जीवन पर्यंत प्रासुक पानी ग्रहण करने का आपका नियम है। आपने छोटी उम्र में शीलव्रत का प्रत्याख्यान् ग्रहण किया । आप प्रतिकूलता में भी सदा सहनशील, धीर गम्भीर रही हैं। दान, शील, एवं तप रूपी त्रिवेणी का संगम आपके भीतर प्रवाहित है। कई संस्थाओं, धर्मस्थानकों एवं धर्मग्रंथों को आपने दानादि से संपोषित किया है। १२७ ७. १३५ श्रीमती कमल चोरडिया :
आप श्रीमान् सुखलालजी एवं सरस्वती बाई की पुत्रवधू, श्रीमती छटाकी बाई, चौथमल जी भंडारी की सुपुत्री एवं श्रीमान्
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