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पूर्व पीठिका
चित्र खण्ड
१. जैन कला एवं स्थापत्य में जैन श्राविकाओं का योगदान :
कला कला के लिए है अथवा “कला जीवन के लिए है, इस संबंध में भारतीय एवं पाश्चात्य चिंतकों ने गहरा ऊहापोह किया है जिससे कई तथ्य सामने आए हैं। कला यदि कला के लिए होती है, तो वह मात्र नेत्रों को आकर्षित करती है, मनोरंजन का एक साधन बनती है। जीवन के निर्माण में, मनोरंजन में उसकी कोई भूमिका नहीं होती। यदि कला का निर्माण जीवन के लिए होता है तो कला उत्कृष्टता को प्राप्त होती है। कईयों के जीवन को निर्माण पथ पर बढ़ाती है। भक्ति के साथ जुड़ी हुई कला वासना के द्वारों से मुक्त करती हई सुगति का मार्ग प्रशस्त करती है। अतः कला जीवन के लिए हो यह अधिक महत्त्वपूर्ण है। कला एवं स्थापत्य अतीत की गौरव गाथाओं को कथन करने वाली महत्त्वपूर्ण सामग्री है। कला एवं स्थापत्य इतिहास की कड़ियों को जोड़ने में अपना महत्त्वपूर्ण सहयोग प्रदान करते हैं। प्रस्तुत शोध प्रबंध में प्राप्त आधारों पर कालक्रम से अपने विषय के अनुरूप जैन कला एवं स्थापत्य पर श्राविकाओं का जो प्रभाव रहा है, उसे यथासंभव वर्णन करने का प्रयत्न किया गया है। इसमें ई. पू. द्वितीय शती से लेकर ई. सन की बीसवीं शती तक के लगभग ६३ चित्रों को संकलित किया गया है। चित्रों का विवरण भूमिका विभाग में तथा चित्रों को विवरण के अंत में प्रदर्शित किया गया है।
१.१ उड़ीसा के स्थापत्य एवं कला पर जैन श्राविकाओं का प्रभाव :
ई.पू. की द्वितीय शती से संबंधित उड़ीसा के हाथीगुंफा शिलालेख द्वारा निम्न तथ्य प्रमाणित होते हैं। कलिंग के चेदिवंश के तृतीय नरेश खारवेल ने नंदराजा पर विजय प्राप्त कर कलिंग जिन मूर्तियों को उदयगिरि पहाड़ी पर पुनर्प्रतिष्ठित किया था। उनकी माता ऐरादेवी तथा पत्नी सिंधुला देवी दोनों ही सुश्राविकाएं थी। दोनों ही जिन धर्म के प्रति श्रद्धाशील एवं दृढ़ प्रतिज्ञ थी। ई. पू. १५३ में कुमारी पर्वतपर जिन मंदिर का निर्माण किया गया था, जैन मुनिसंघ का महासम्मेलन आयोजित हुआ था, तथा द्वादशांगी श्रुत ज्ञान का समुद्धार हुआ था, इसकी पृष्ठभूमि में इन दोनों सुश्राविकाओं की प्रबल प्रेरणा निहित थी। कुमारी पर्वत के समीप ही रानी सिंधुलादेवी ने अपनी दानशीलता का विस्तार करते हुए भ्रमणशील श्रमणों के निवास हेतु कृत्रिम गुफाएं बनवाई थी। उसी के निकट एक काय निषिद्या का निर्माण करवाया था, जो "अरहंत प्रासाद" के रूप में प्रसिद्ध हुआ था, तथा उसकी रचना स्तूपाकार थी। इन गुफाओं का विशेष विवरण चतुर्थ अध्याय की भूमिका में उल्लेखित किया गया है।
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