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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास का वर्णन मिलता है:- जिनमें निम्नलिखित नाम उल्लेखनीय है। सद्दालपुत्र की पत्नी अग्निमित्रा, नन्दिनी पिता की पत्नी अश्विनी, सालिनीपिता की पत्नी फाल्गुनी, शंख की पत्नी उत्पला, सुरादेव की पत्नी धन्या, चुल्लशतक की पत्नी बहुला, कामदेव की पत्नी भद्रा, आनन्द की पत्नी शिवानंदा आदि। अंतकृतदशांग सूत्र जैन अंग साहित्य का आठवां अंग है। इसके सातवें वर्ग में पोलासपुर नगरी के "विजय" महाराजा की महारानी एवं मुक्तिगामी अतिमुक्तक की माता "श्रीमती" का उल्लेख आता है, जिनकी श्रमण-भक्ति एवं सेवा की झलक के संस्कारों से अतिमुक्तक दीक्षित हुए। छठे अंग ज्ञातासूत्र के चौदहवें अध्ययन में तेतलीपुत्र की पत्नी पोट्टिला ने श्राविका व्रतों का आराधन किया, इसका उल्लेख प्राप्त होता है। व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र के नौवें शतक में उल्लेख हुआ है कि देवानंदा ब्राह्मणी श्रमणोपासिका के व्रतों को धारण करती हुई विचरण कर रही थी। भगवान् महावीर द्वारा नगरी में पदार्पण के समाचार सुनकर वह अतिप्रसन्न हुई। भगवतीसूत्र के पंद्रहवें शतक में प्रभु महावीर के प्रति समर्पित श्राविका व्रतों का सम्यक् परिपालन करने वाली रेवती का वर्णन आता है। रेवती ने सिंह अणगार को कोलपाक श्रद्धापूर्वक अर्पित किया, जिसका सेवन करके प्रभु महावीर का दाहज्वर दूर हुआ। बारहवें शतक प्रथम उद्देशक में शंख श्रावक की पत्नी श्रमणोपासिका उत्पला का पति के धर्म कार्य में सहायिका बनने का उदाहरण प्राप्त होता है। इसी बारहवें शतक के दूसरे उद्देशक में इतिहासप्रसिद्ध श्रमणोपासिका जयंति श्राविका ने सर्वजन लाभकारी तात्विक प्रश्न भगवान् महावीर से पुछे थे। उन प्रभावशाली प्रश्नोत्तरों का इसमें उल्लेख हुआ है। कल्पसूत्र में भ०. महावीर की माता देवानंदा एवं त्रिशला द्वारा देखे गये चौदह स्वप्नों का वर्णन है, जिसमें त्रिलोकीनाथ तीर्थंकर प्रभु की जन्मदात्री माताओं के अमूल्य योगदान का वर्णन है। उत्तराध्ययन सूत्र जो प्रभु की अन्तिम वाणी है, उसमें महारानी कमलावती का प्रेरक प्रसंग प्राप्त होता है। भोग, ऐश्वर्य एवं धन की लालसा कितनी घणित होती है, यह रानी कमलावती ने महाराज इषुकार को समझाकर त्याग मार्ग के लिए प्रेरित किया तथा स्वयं भी साध्वी बन गई। दशवैकालिक सूत्र के द्वितीय अध्ययन में भोगों के दल-दल में फंसनेवाले रथनेमि को, भोगों के कीचड़ से निकालकर पवित्र त्याग मार्ग पर बढ़ाने वाली राजीमती की प्रेरणा इतिहास के स्वर्ण पृष्ठों पर रेखांकित है। हरिभद्रीयवृत्ति, आवश्यक नियुक्ति भाग २ प. १३७. व प. १५६ में बारह व्रतधारी कोशा श्राविका के उज्जवल जीवन की झांकी प्राप्त होती है। तथा माता मरूदेवी के मोक्षगमन द्वारा अवसर्पिणी काल में सिद्धत्व पद प्राप्त करने वाली प्रथम आत्मा के रूप में वर्णन प्राप्त होता है। आगमिक व्याख्या साहित्य अर्थात् आगमों पर प्राकृत एवं संस्कृत में लिखी गई टीकायें हैं। ईसा की पांचवी शती से बारहवीं शती तक का समय इसके अन्तर्गत लिया जा सकता है। आगमिक व्याख्या साहित्य में श्राविकाओं के उल्लेखनीय योगदान की झलक मिलती है। आवश्यक चूर्णि भाग १ में राजा दधिवाहन की रानी एवं चंदना की माता धारिणी का उल्लेख है। जिसने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए देह की मूर्छा का त्याग कर प्राणों की आहुति दी। आगमिक व्याख्याओं में कुछ ऐसे भी वर्णन उपलब्ध हैं जो आगमों में अनुपलब्ध हैं, जैसे ऋषभदेव की माता मरूदेवी, ब्राह्मी, सुन्दरी आदि इनका मात्र संकेत किया गया है। इन नारियों का शिक्षा के क्षेत्र में अपूर्व योगदान रहा है। आगमिक व्याख्याओं में प्राप्त उल्लेखों से ज्ञात होता है कि वेश्यायें और गणिकायें भी धर्म संघ में प्रवेश करके श्राविकायें बन जाया करती थीं । कोशा ऐसी वेश्या थी, जिसकी शाला में जैन मुनियों को निःसंकोच भाव से चातुर्मास व्यतीत करने की अनुज्ञा आचार्य दे देते थे। मथुरा के अभिलेख इस बात के साक्षी हैं कि गणिकाएं जिनमंदिर और आयागपट्ट (पूजापट्ट) बनवाती थीं। वेश्याओं और गणिकाओं की भी अपनी नैतिक मर्यादाएं थी, जिनका वे कभी उल्लंघन नहीं करती थीं/७१ १.१५ चरित एवं कथा काव्यों में श्राविकायें : आचार्य हेमचंद्र विरचित त्रिषष्टिशलाका पुरूष चरित्र चौबीस तीर्थंकरों, नौ बलदेवों, नौ वासुदेवों एवं नौ प्रतिवासुदेवों की माताओं, पत्नियों तथा उस समय की प्रमुख श्राविकाओं का जीवनवृत्त है। "पउमचरिउं" में बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी के शासनकाल में हुई श्राविकाओं का वर्णन है। पं. शुक्लचंदजी म. की शुक्ल जैन महाभारत में महाभारत काल की श्राविकाओं का वर्णन है। जैन पुराणकोष में भी पौराणिक काल की श्राविकाओं का जीवनवृत्त प्राप्त होता है। जैन साहित्य में श्रीकृष्ण चरित्र में देवकी को अतिमुक्तक मुनि द्वारा दिये गये वचन का तथा देवकी के छः पुत्रों का पालन सुलसा के यहां होने का वर्णन आदि का उल्लेख हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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