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________________ 560 सोलहवीं से 20वीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ क्र० । । श्राविका नाम वंश/ गोत्र पृ. प्रेरक/प्रतिष्ठापक गच्छ/आचार्य अंचल श्री सूरि 3859 1545 | उनकाई, रमाई, ललनादे, इसर श्रीमाली वंष | प्रतिमा निर्माण संदर्भ ग्रंथ | आदि भ. श्री आदिनाथ जे.जै.ले.सं. जी भ. श्री नमिनाथ | जे.जै.ले.सं. 3860 | 1549 ............... उपकेष मणिचन्द्र सूरि जी | 1557 | रूपी, देमी चणकाल्या गोत्र मलधार गुणवानसूरि | भ. श्री धर्मनाथ जे.जै.ले.सं. | 31 3862 | 1562 | जिसमादे, पूनदे | उकेष .................. जे.जै.ले.सं. 31 प्रा. ज्ञा. तपा हेमविमल सूरि | 31 1566 | रंगी, रत्नादे, दाकिमदे | 1571 काऊ, सुहडादे, माणिकदे हासू | 1509 | सशण भ. श्री आदिनाथ | जे.जै.ले.सं. जी भ. श्री शान्तिनाथ जे.जै.ले.सं. 3864 उप. ज्ञा. देवरत्न सूरि जी 3865 उसवाल ज्ञा. सुराणा | पद्मानंद सूरि भ. श्री कुंथुनाथ | जे.जै.ले.सं. गोत्र जी 3866 | 1521 | धर्माद, अली श्री श्री माल ज्ञा. सुविहित सूरि भ. श्री शान्तिनाथ | जे.जै.ले.सं. | 32 जी 3867 | 1506 | हुती माणिक सुचन्ती गोत्र | 34 3868 | 1513 ओसवाल, भावलदे सावंदेव सूरि भ. श्री वासपूज्य | जे.जै.ले.सं. जी तपा श्री रत्नषेखर सूरि | भ. श्री सुमतिनाथ | जे.जै.ले.सं. जी तपा श्री मुनिसुन्दर भ. श्री पार्श्वनाथ | जे.जै.ले.सं. 34 3869 | 1517 | साधू, राजू प्रा. ज्ञा. जी 3870 | 1549 | वरम्हा, चांदगदे, नूपा. | त्रिभुवन कीर्ति .................. जे.जै.ले.सं. | 34 नेना 3871 1559 | माणिक, सारू की श्रीमाल ज्ञा। बुद्धिसागर शूरिश्री धर्मनाथ जर्जलेलं. श्री श्रीमाल ज्ञा साल भ. श्री धर्मनाथ | बुद्धिसागर सूरि जे.जै.ले.सं. जी 38721559 | गोपाही 3873 | 1563 | रानूरानी श्रीमाल ज्ञा. तातहड़ | उपकेष देवगुप्ति सूरि | भ. श्री कुंथुनाथ | जे.जै.ले.सं. गोत्र जी उसवाल पूगलिया | श्री शान्ति सूरि भ. श्री मुनिसुव्रत जे.जै.ले.सं. गोत्र सुराणा गोत्र धर्मघोष नन्दिवर्द्धन सूरि | भ. श्री शान्तिनाथ | जे.जै.ले.सं. 3874 |1569 |धणपालही जी 3875 1584 हर्शा, हीरा ओसवंष गोत्र 3876 1597 | भाना, भरमा प्रा. ज्ञा. जिन साधु सूरि 3877 || 1703 पंखवालेचा गोत्र तपा विजयसिंह सूरि भ. श्री शान्तिनाथ | जे.जै.ले.सं. जी भ. श्री आदिनाथ | जे.जै.ले.सं. जी भ. श्री मुनिसुव्रत जे.जै.ले.सं. जी | भ. श्री संभवनाथ जे.जै.ले.सं. जी | भ. श्री सुविधिनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.स. 3878 प्रा. ज्ञा, पूर्णिमा पुण्यरत्न सूरि 1532 | काई, वाउं, देवलदे लाकी अजी, बाई, सहिज्यादि 38791524 लशमादे, धारू ऊकेष ज्ञा. तपा. लक्ष्मीसागरसूरि 38 जी हरशमदे, सीतादे ओसवाल खरतर जिनचन्द्रसूरि भ. श्री अनंतनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.स. 39 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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