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जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास
क्र०
संवत्
प्राविका नाम ।
वंश/गोत्र
आदि
3837 |1524 | जीविणि
श्री. श्री. वंष
सूरि
3838 | 1557 | माल्हू, देवलदे
प्रा. ज्ञा.
प्रेरक/प्रतिष्ठापक | प्रतिमा निर्माण संदर्भ ग्रंथ
गच्छ/आचार्य अंचल श्री जयकेसरी भ. श्री सुविधिनाथ| जे.जै.ले.सं.
जी मडाहड़ गुणचन्द्रसूरि भ. श्री विमलनाथ | जे.जै.ले.सं.
जी मलधारि लक्ष्मीसागर भ. श्री पार्श्वनाथ | जे.जै.ले.सं. सूरि श्री शान्ति सूरि भ. श्री नमिनाथ जे.जै.ले.सं.
3839 | 1569 | मील्हा, तिलश्री
मेडतवाल गोत्र
3840 | 1501 | सारू
उपकेष ज्ञा.
3841 | 1501 | साण्ह, दूदी
धर्मघोष विजयप्रभ सूरि
........
जे.जै.ले.सं.
3842
| 1501 | सागू, रानू, मूती
।
उ. ज्ञा.
चैत्र श्री मुनितिलक
| भ. श्री शान्तिनाथ जे.जै.ले.सं.
जी
3843
| 1502 | लाषणदे
प्रा. ज्ञा.
तपा रतन शेखर सूरि
| भ. श्री कुंथुनाथ | जे.जै.ले.सं. ।
जी भ. श्री सम्भवनाथ | जे.जै.ले.सं.
3844 | 1506 | परवाई
उकेष
श्री कक्क सूरि
जी
3845 | 1507 | गुणश्री
लोढ़ा गोत्र
खरतर. जिनसागर सूरि
भ. श्री धर्मनाथ
जे.जै.ले.सं.
जी
3846
1510
हिंगड़ गोत्र
तपा. श्री हेमहंस सूरि
28
3847 | 1512 | देवाही
उपकेष श्री कक्कसूरि
भ. श्री सुविधिनाथ| जे.जै.ले.सं. जी भ. श्री अनन्तनाथ | जे.जै.ले.सं. जी भ. श्री धर्मनाथ जे.जै.ले.सं.
ओसवाल ज्ञा. आदित्यनाग गोत्र ओसवाल ज्ञा.
28
3848 | 1515 | फाई
श्री मलधारी सूरि
| 29
3849 | 1516
| लाबू
श्री. ज्ञा.
3850 | 1523 | देऊ, तेजू
पिप्पल. श्री शालिभद्रसूरि भ. श्रीशान्तिनाथ | जे.जै.ले.सं.
जी पूर्णिमा. साधुसुन्दर सूरि भ. श्री नमिनाथ जे.जै.ले.सं.
जी खरतर श्री जिनहर्ष सूरि | भ. श्री विमलनाथ | जे.जै.ले.सं.
129
मंत्रिदलीय ज्ञा.
वाकुं, रामाति
38517
जी
3852
खरतर जिनतिलक सूरि | भ. श्री श्रेयांसनाथ| जे.जै.ले.सं.
1528
श्री माल वंष
जूनीवाल गोत्र 1529 | मेघादे, भावलदे, मेघू | ओसवाल ज्ञा.
जी
an का भावलदै आसवाल का
3853
जज वर सूरिन भी पदमा जलेस.
| 29
प्रा. ज्ञा.
| 30
3854 | 1530 | नामलदे, सांवल, |
सीचू 3855 | 1530 | सपूरी, पाल्हणदे
वज वर सूरि भ. श्री पद्मप्रभ जे.जै.ले.सं.
जी तपा श्री लक्ष्मीसागरसूरि | भ. श्री नमिनाथ | जे.जै.ले.सं.
जी तपा श्री लक्ष्मीसागरसूरि | भ. श्री मुनिसुव्रत | जे.जै.ले.सं.
जी खरतर जिनभद्रसूरि भ. श्री सुपार्श्वनाथ जे.जै ले.सं.
प्रा. ज्ञा.
| 30
3856 | 1533
लीलादे
श्री. माल वंष
3857 | 1534 | ऊमकु, ताकू
| श्री माल ज्ञा.
चैत्र लक्ष्मीसागर सूरि
| भ. श्री शान्तिनाथ जे.जै.ले.सं.
an | 4 अन् त्या नीर शांटिक गोत्र की भावदेव गरिन यी मतिनाम जलेज.
3858
| 1534 | अचू, रयनादे, हमीरदे | ऊ. कांटड़ गोत्र
श्री भावदेव सूरि
भ. श्री सुमतिनाथ | जे.जै.ले.सं.
30
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