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________________ 472 सोलहवीं से 20वीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ क्र० संवत् श्राविका नाम वंश/गोत्र प्रेरक/प्रतिष्ठापक | प्रतिमा निर्माण संदर्भ ग्रंथ गच्छ/आचार्य आदि कक्कसूरी भ. श्री शीतलनाथ दि.जै.इ.इ.अ. 1880 उप. ज्ञा 1559 | कुअरि, भक्ति, सोभागिणी 1560 | सघई, हेमई 1881 उस. ज्ञा | देवगुप्तसूरी भ. श्री आदिनाथ दि.जै.इ.इ.अ. 1882 1560 | पोई, सूहवदे, सिंगारदे 1560 | वनादे, कहरणादे 1883 उछतवाल उप. ज्ञज्ञ | वीरचंद्रसूरी भ. श्री कुथुनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. गोत्र उकेषवंष जी श्री. श्री पूर्णिमा. सौभाग्यरत्नसूरी | भ. श्री नेमिनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. जी उसवाल. ज्ञा श्रीसूरी भ. श्री विमलनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. 1884 1560 लीलादे, देमाई 1885 1560 | गंगादे, लसा तपा. हेमविमलसूरी भ. श्री सुमतिनाथ दि.जै.इ.इ.अ. जी 1886 1560 | पद्माई श्री वंष भावसागरसूरि भ. श्री धर्मनाथ जी दि.जै.इ.इ.अ. 1887 | 1561 लाडू, रामति, हर्षमदे | हूंबड़ ज्ञा वृद्धतपा बुद्धिसागरसूरि भ. श्री शीतलनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. जी भ. श्री सुमतिनाथ दि.जै.इ.इ.अ. 1888 | 1561 | अमकू, माघलदे उकेष. ज्ञा उकेष. सिद्धसूरी जी 1889 | 1563 सहिजलदे, अमरादे | प्रा. ज्ञा पूर्णिमा. उदयचंद्रसूरी भ. श्री धर्मनाथ जी दि.जै.इ.इ.अ. 1890 | 1563 | गउरदे उकेष, वंष ढींगसेत्र | खरतर. जिनहंससूरि भ. श्री चंद्रप्रभु जी| दि.जै.इ.इ.अ. 18911564 हर्षाई, टीकु श्रीमाल. ज्ञज्ञ तपा. हेमविमलसूरी भ. श्री आदिनाथ दि.जै.इ.इ.अ. जी भ. श्री सुमतिनाथ दि.जै.इ.इ.अ. 1892 | 1564| गोरी; गेली, मज्लाई श्री. श्रीवंष अंचल. भावसागरसूरि जी 1893 1564| गोरी, गेली, जेठी श्री. श्रीवंष | अंचल. भावसागरसूरि भ. श्री चंद्रप्रभु जी दि.जै.इ.इ.अ. 1534 | गोरी. गेल्ही श्री. श्रीवंष | अंचल. भावसागरसूरि भ. श्री अजितनाथ| दि.जै.इ.इ.अ. 1895 1565 | माणिकदे, रूपी श्री. श्री पूर्णिमा. सौभाग्यसूरी भ. श्री श्रेयांसनाथ| दि.जै.इ.इ.अ. 1896 1565 | माघलदे, पांची श्री. श्री सुमतिप्रभसूरि भ. श्री सुमतिनाथ दि.जै.इ.इ.अ. 1897 1565 उसवाल. ज्ञा वृद्धतपा. लब्धिसागरसूरि | भ. श्री नेमिनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. सोमाई, कुलवंती, राजलदे माकू 1898 श्री. श्री नागेंद्र. हेमरत्नसूरि भ. श्री आदिनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. 1899 1566 | नागिणि, सिरियादे श्री श्री वंष अंचल. भावसागरसूरि भ. श्री अभिनंदन दि.जै.इ.इ.अ. 1900 1566 | कसूराई प्रा.ज्ञा हेमविमलसूरि भ. श्री शांतिनाथ | दि.जै.इ.इ.अ. 19011566 गोमति प्राग्वंष जिनरक्षत जिनहंससूरि भ. श्री मुनिसुव्रत दि.जै.इ.इ.अ. गोत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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