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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास परिवार में पुत्रवधू के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार किया जाता था। पुत्रवधू के विध्वा हो जाने पर कभी-कभी स्नेहसिक्त सास भी पुत्रवधू का अनुसरण (अग्नि में) करती थीं। सास-ससुर पुत्रवधू को पुत्रीवत् स्नेह करते थे तथा उसका विरह उन्हें सह्य नहीं होता था। परिवार का प्रत्येक सदस्य पुत्रवधू का सम्मान करता था। देवर के लिए भाभी पूज्या थीं तथा आदर सूचक संबोधन की पात्र थीं। जैसे लक्ष्मण सीताजी को आदरणीया कहकर संबोधित किया करते थे। पुत्रवधू सास-ससुर की सेवा करना अपना कर्तव्य समझती थीं। ___पौराणिक नारी आर्दश, परवर्ती नारियों के लिए दिशाबोधरूप है। पुत्र के समान इस युग में पुत्री प्राप्ति के लिए भी यज्ञादि होते थे, कन्या दर्शन को मंगलकारी माना जाता था। वैवस्वत मनु की धर्मपत्नी श्रद्धा ने पुत्रेष्टि यज्ञ के समय होता से कन्या प्राप्ति की कामना की थी। ___ आदर्श पत्नी को व्रत, तपस्या, देवार्चा सबको त्यागकर केवल पति-सेवा, पति स्तवन, और पति-परितोषण ही करना चाहिए, चाहे पति कोढ़ी और अपंग ही क्यों न हो। पुराणों का मत है कि पति के वचन सर्वथा पालनीय हैं विचारणीय नहीं। पुराणकालीन पत्नी पति का नाम अधरों पर नहीं आने देती थी, आदरसूचक विशेषणों का आश्रय लेकर ही काम निकाला जाता था। नारी का हासः इस युग में दम्पत्ति आराध्य और आराधक जैसी स्थिति में आ गए थे। तत्कालीन स्त्री ने स्व का ही विलीनीकरण कर दिया था। वह पति की संरक्षिता अर्थात् दासीवत् निरीह प्राणी होकर रह गई थी। १.२ म०. बुद्ध और म०. महावीरकालीन नारियों का सामाजिक अवदान: १.२.१ बौद्ध धर्म में नारी: भ०. बुद्ध व भ०. महावीर ने सामाजिक उत्थान के लिए नारियों को धर्म कर्म एवं सामाजिक क्षेत्र में आगे किया। भ०. महावीर स्वामी ने चंदना को दीक्षा दी। बुद्ध ने गौतमी को धर्म क्षेत्र में आगे बढ़ाया। बौद्ध युग में स्त्री शिक्षा का पर्याप्त प्रसार था । बौद्ध संघ की छत्र छाया में अनेक भारतीय महिलाओं ने उच्चतम आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया तथा अपनी विद्वत्ता से संघ को गौरवान्वित भी किया। संघ के अन्तर्गत तथा बाहर अनेक स्त्रियां थी, जो धर्म तथा दर्शन के शाश्वत सत्यों को समझने के उद्देश्य से ब्रह्मचर्य का जीवन व्यतीत करती थीं। एक उदाहरण है अशोक की पुत्री संघमित्रा का जो बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के प्रसार के लिए श्री लंका गई थी। धम्मपद की अट्ठकथा में कई स्त्रियों का वर्णन है जिन्होंने विशेष प्रसंग पर भिक्षु भिक्षुणियों को आहार दान दिया था। तिस्स की माता ने पांच सौ भिक्षुओं को जो सारिपुत्र के साथ थे, उन्हें विपुल भिक्षा दी। ___ बंधुला की पत्नी मल्लिका ने दो प्रमुख शिष्यों सहित पांच सौ भिक्षुओं को अपने घर आमंत्रित किया। भगवान् बुद्ध ने भिक्षु भिक्षुणियों के जीवन निर्वाह के लिए उपासक उपासिकाओं का होना आवश्यक माना था। गृहस्थ लोग ही इनके लिए चीवरदान, पिण्डदान, औषधिदान और स्थान दान (शय्यादान) आदि की व्यवस्था करते थे। भगवान बुद्ध ने धर्मनिष्ठ और धर्मानुरागी १० उपासिकाओं का वर्णन किया है, जो विशिष्ट गुणों से युक्त थीं। बौद्ध संघ को मुक्त हस्त से दान देने वाली उपासिकाओं में विशाखा का नाम प्रमुख है। इसने करोड़ों की दान राशि भिक्षु-भिक्षुणियों के लिए दी थी तथा एक संघाराम बनवाया था। इस कार्य के लिए उसने भगवान से आठ आशीर्वाद प्राप्त किये थे। पतिकुल में जाने के बाद भी बौद्ध उपासिकायें अपने ससुराल वालों का धर्म परिवर्तन करवा देती थीं। विशाखा ने भी ऐसा ही किया था। ब्राह्मण धर्म की तरह बौद्ध धर्म में भी नारी विषयक परस्पर विरोधी विचारधारायें देखने को मिलती हैं। भगवान बुद्ध ने एक ओर तो नारी को धार्मिक जीवन के लिए बाधा स्वरूप, पाप स्रोत, परिग्रह रूप और अस्थिरमना आदि कहकर निरुपित किया है तथा दूसरी ओर उन्होंने नारी का सम्मान किया हैं, जब राहुल की माता उन्हें वंदन करने नहीं आई तो वे स्वयं उसके समक्ष उपस्थित हुए। बुद्ध ने स्वयं कहा कि नारी में कोई क्षुद्रता नहीं होती और न ही वह घृणा की पात्र होती है। अतः भगवान् बुद्ध ने जहां नारी की आलोचना की है, वहीं उन्होंने उसकी प्रशंसा भी की है। भगवान् बुद्ध ने बौद्ध की उपासिका बनने के लिए महिलाओं को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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