________________
जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास
देशभूषण जी से मुनि दीक्षा ग्रहण की। आचार्य श्री विद्यानंदजी के रूप में वे सुविख्यात हैं । ४१ माँ सरस्वती की कुक्षी मुनि श्री विद्यानंद जी जैसे पुत्र को पाकर धन्य हुई।
६.३८ श्रीमती चम्पा श्राविका - ई. सन् की १६ वीं - १७ वीं शती.
चम्पा श्राविका आगरा की रहनेवाली थी। उन दिनों आगरा को अकबराबाद भी कहा जाता था और वह हिंदुस्तान की राजधानी थी। देश पर अकबर का शासन था। उस समय वहाँ प्रसिद्ध जैनाचार्य श्री हीर विजय सूरि विराजित थे। उनके पावन सान्निध्य में एक बार चम्पाबाई ने एक सौ अस्सी दिवसीय सुदीर्घ तपस्या की । नगरवासी धन्य धन्य कह उठे । तपस्या संपन्न हुई तब नगर में भव्य शोभायात्रा निकाली गई। शोभायात्रा किले के सामने से भी गुजरी। अकबर ने पूछा यह कैसा जुलूस है ? सेवकों ने बताया कि एक सौ अस्सी - दिन तक श्राविका चंपाबाई द्वारा किये गये उपवास पूर्ण हो गये हैं, उसी उपलक्ष्य में जैन समाज ने ये जुलूस निकाला है। एक सौ अस्सी दिन सिर्फ गर्म पानी के आधार पर कोई कैसे जिन्दा रह सकता है ? छ: महिने तक कोई भूखा नहीं रह सकता अकबर की यह बात चम्पाबाई ने सुनी तो उसने कहा, मैं महाराजा अकबर के पहरे में रहते हुए एक बार फिर यह तपस्या करके दिखा सकती हूँ। अकबर ने जैन धर्म के तप की सच्चाई स्वयं देखने के लिए चम्पाबाई को अपने महल में रखा।
377
एक सप्ताह बीता, दो सप्ताह बीते, सांच को कैसी आंच ? चम्पाबाई की देह कांति तपस्या से बढ़ती ही चली गई, साथ साथ अकबर का विस्मय भी बढ़ता गया । आत्म-शक्ति पर धीरे-धीरे उसका भरोसा जमने लगा। चम्पाबाई को जब तप करते एक महीना बीत गया तब अकबर मान गया कि दीर्घ तपस्यायें हो सकती हैं। उन्होंने चंपाबाई से पारणा करने का आग्रह किया और अपनी बात वापिस ली। बादशाह स्वयं पारणे में शामिल हुआ । अनुश्रुति यह भी है कि चम्पाबाई से उसने इतनी लम्बी तपस्यायें कर पाने का रहस्य पूछा। चम्पाबाई ने इसका श्रेय आचार्य श्री हीरविजय जी सूरि द्वारा प्रदत्त प्रेरणा को बताया और कहा - "उन्हीं की कृपा से मैं तप कर पाती हूँ ।"
इस बात से प्रभावित होकर बादशाह अकबर स्वयं आचार्य प्रवर के दर्शन करने गए। आचार्य श्री ने उन्हें अहिंसा का मंगलमय उपदेश देते हुए जीव रक्षा का महत्व समझाया। जीवन में अहिंसा को धारण करने की प्रेरणा दी। कहा जाता है कि अकबर को चिड़ियों की जीभ का मांस खाना बड़ा पसंद था। इस कारण बहुत सारी चिड़ियाँ मारी जाती थी । आचार्य श्री के पावन संदेश व प्रेरणा से बादशाह ने मांस खाना छोड़ दिया। चिड़ियों ने अभय पाया । जितने दिन चम्पा बहन ने व्रत रखा, बादशाह ने राज्य में अमारि का आदेश दिया, अतः अन्य धर्मो के साथ-साथ अकबर के राज्य में जैन धर्म के आचार्यों का बहुत आदर था । अकबर ने जैन तीर्थों पर यात्रियों का लगनेवाला जज़िया कर (टैक्स) भी माफ कर दिया था। जैनधर्म की प्रभावना हुई। पर्युषण पर्व के पहले आज भी चंपा बहन का वत्तान्त प्रवचन में पढ़ा जाता है।
चंपा बाई इतिहास की उन जैन श्राविकाओं में से एक थीं, जिन्होंने संयमी जीवन जीकर मानव देह का तो भरपूर लाभ उठाया ही, अपना नाम इतिहास के साथ-साथ लोक मानस में भी अंकित कर दिया। अपने समय के जैन एवं जैनेतर समाज़ों में उनकी विविध तप-आराधनाओं की पर्याप्त प्रसिद्धि व प्रतिष्ठा थी। अपनी आत्म शक्ति से लोगों को चमत्कत कर देने की उनमें क्षमता थी। इस क्षमता का उपयोग अपने जीवन में अनेक बार उन्होंने किया । ४२
६.३६ चारलेट क्रॉस (जर्मन जैन श्राविका १६ वीं शती)
विदेशी विद्वानों में जर्मन के विद्वानों ने जैन धर्म में काफी रूचि दिखाई है। जर्मन के Maxmullar Albrecht Weber, Hermann Jacobi आदि विद्वानों में Dr. Charlotte Crause का नाम चमकते हुए सितारे के समान है। मई १८, १८६५ में उनका जन्म हुआ, Leipzig University से उसने पी. एच. डी की डिग्री प्राप्त की तथा राजस्थान की प्राचीन कथा "Nasaketari Katha" पर प्राचीन राजस्थानी व्याकरण सहित टीका लिखी । १६२० में २५ वर्ष की उम्र में प्राचीन गुजराती की खोजी गई पुस्तक "जैन पंचतंत्र" पर उसने आश्चर्यजनक निबंध लिखकर जैन विद्वानों की कोटि को प्राप्त किया। विश्वविद्यालय ने उसे भारत आकर जैन धर्म का ज्ञान पाने के लिए दो वर्ष की छुट्टी प्रदान की Academic Leave दी। भारत में सन् १९२६ में आई। उसने भारत के जैन तीर्थो के परिभ्रमण का विचार बनाया। विद्वानों एवं आचार्यों से मिली। आचार्य श्री विजय धर्मसूरि जी मुनि मंगलविजय जी, एवं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org