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________________ आठवीं से पंद्रहवीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ संवत् श्राविका नाम 554 | 1483 | संघविणिराजू वंश/गोत्र प्रेरक/प्रतिष्ठापक अवदान संदर्भ ग्रंथ गच्छ / आचार्य गांधी श्री मल्लधारि श्री विद्या | श्री जीराउलाभुवनदेव | श्री जै.प्र.ले.सं. गोत्र/उसवाल | सागर सूरि ज्ञा. श्री माल ज्ञा | तपा श्री भुवनसुंदर सूरि | श्री जीराउलाभुवनदेव | श्री जै.प्र.ले.सं. 555 1483 | चंपाइदे | 152 5561483 | मेघू ओसवंष अंचल श्री जयकीर्ति सूरि | देवकुलिका | श्री जै.प्र.ले.सं. 557 1483/ लखमादे उस वंष अंचल श्री जयकीर्तिसूरि श्री जै.प्र.ले.सं. 558 उस वंष अंचल श्री जयकीर्तिसूरि | पूजा देहरी श्री जै.प्र.ले.सं. 153 | 1483 | प्रतापदे, लखमादे, भीखी, कौतिकदे | 1483 | तेजलदे, कौतिकदे 559 ओस ज्ञा. |श्री जै.प्र.ले.सं. M.स. 560 | 1483/ तेजलदे, कौतिकदे ओस ज्ञा. |श्री जै.प्र.ले.सं. | अंचल श्री जयकीर्तिसूरि | श्री जी. पार्श्वचैत्य देहरीत्रयं अंचल श्री जयकीर्तिसूरि | श्री जी. पार्श्वचैत्य देहरीत्रयं कारापिता अंचल श्री जयकीर्तिसूरि | श्री जी. पार्श्वचैत्य देहरीत्रयं कारापिता अंचल श्री जयकीर्तिसूरि | श्री जी. कारापिता 561 | 1483 | तेजलदे, कडतिगदे ओस ज्ञा. | श्री जै.प्र.ले.सं. 154 562 | 1483 | तेजलद, कडतिग, नारंगीदे | ओस ज्ञा. | श्री जै.प्र.ले.सं. 563 1483 | रूडया ओस. ज्ञा. अंचल श्री जयकीर्तिसूरि | आत्म श्रेयार्थ देहरी | श्री जै.प्र.ले.सं. 155 1483 | तेजलदे, खीमादे ओस ज्ञा. अंचल श्री जयकीर्तिसूरि | आत्म श्रेयार्थ देहरी |श्री जै.प्र.ले.सं. 565 | 1483 माऊ, हिचकु, ऊदी श्री श्री ज्ञा. अंचल श्री जयकीर्तिसूरि | देहरी श्री जै.प्र.ले.सं. 156 566 श्री जै.प्र.ले.सं. 15 1421 | भोली, भावलदे, मुक्तु, | भावलदे 1483 567 श्री जै.प्र.ले.सं. 158 | श्री उपकेष ज्ञा. | उपकेष देवगुप्तसूरि | श्री पार्श्व. चैत्य चीचत्रगोत्र देवकुलिका श्री ज्ञा. बृहतपा. श्री जिनसुंदर | अग्रेषिखरं कारितं सूरि मोढ ज्ञा. आगमिकगच्छ पद्म प्रभ पार्श्वदेव आगमिक श्री ज्ञा. भ. श्री जिनसुंदर सूरि रंगदेव 568 1421 हीमादे श्री जै.प्र.ले.सं. 569 | 1483 | गज श्री जै.प्र.ले.सं. 570 1483 | हंसादे श्री जै.प्र.ले.सं. श्री तपा. भ. श्री अंगज रंग देव जयचंद्रसूरि जयदेव सूरि प्रतिष्ठित | आदिनाथ 571 1301 | सहजलदेवी प्रा. ज्ञा. पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 3 572 1303 | श्रृंगारदेवी प्रा. ज्ञा. आचार्य प्रतिष्ठित शांतिनाथ प्रतिमा | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 573 | 1214 | कुर देवी प्रा. ज्ञा. | आचार्य प्रतिष्ठित पार्श्वनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 574 | 1215 | देमति प्रा. ज्ञा. देवभद्र सूरि पार्श्वनाथ पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 9 575 1357 | नाथी प्रा. ज्ञा. पा.जै.धा.प्र.ले.सं. शांतिसूरि, अजितसूरि के | शांतिनाथ उपदेष से धर्मदेव सूरि पार्श्वनाथ 576 | 1365 | हांसल प्रा. ज्ञा० पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 5 577 |1367 | लखमादेवी, विलहण देवी । प्रा. ज्ञा. | धर्मदेव सरि आदिनाथ | पा.जै.धा.प्र.ले.सं. 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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