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आठवीं से पंद्रहवीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ
संवत् | श्राविका नाम | वंश/गोत्र
अवदान
प्रेरक/प्रतिष्ठापक
आचार्य/गच्छ
संदर्भ ग्रंथ
उप. ज्ञा.
श्री ईश्वर सूरि
श्री आदिनाथ
मल्हणदे, सहजादे, केली, णेमि
उपकेश ।
श्री रामदेवसूरि
श्री आदिनाथ
अहवदे
उसवाल.खांटड
श्री पद्मशेखरसूरि
श्री संभवनाथ
सहजलदे, संगाई,
ऊकेश
खरतर श्री जिनभद्रसूरि
श्री अजितनाथ
जासलदे
पदमाही
गादहियागोत्र
उपकेश श्री सिद्धसूरि
श्री पार्श्वनाथ
अमरी, घसी
चऊथ गोत्र
तपा.श्री लक्ष्मीसागरसूरि
श्री आदिनाथ
नामलदे, वईजलदे
श्री. ज्ञा.
पूर्णिमा श्रीचंद्रसूरि
श्री नमिनाथ
जयतादे | उप.ज्ञा. सुचिंती गोत्र
उपकेश श्री सर्वसूरि
श्री शांतिनाथ
देवल
प्रा. ज्ञा.
पिप्पल वीरप्रमसूरि
श्री पद्मप्रभु
माचियक्के
भा. इ.द
साहिणी बिट्टिग की पुत्री, गण्डविमुक्तदेव की शिष्या थी।
जिनमंदिर का निर्माण करवाकर दान में दिया
था।
३४० | ११
हरिहरदेवी
जै. शि. सं. भ.३ | १६६
कौण्डकुंदान्वय के | करडालु में ध्वस्तबस्ति के पंच नमस्कार मंत्र का
चंद्रायणदेव की | स्तंभ पर कनन्ड़ भाषा | उच्चारण कर गहस्थ शिष्या थी। का लेख है। | समाधिमरण को प्राप्त
किया था।
३४१५६
अलियादेवी | बिज्जलदेवी की पुत्री | हेरेकेरी में बस्ति के पाषाण | सेत में संदर जिन मंदिर जै. शि. सं. भा.३ |
थी, होन्नेयरस की | पर संस्कृत तथा कन्नड़ बनवाया, भूमि का दान पत्नि थी। भाषा का लेख है। 'दोसिवने का आचार्य
भानुकीर्ति सिद्धांतदेव को
दिया था।
३४२
जै. सि. भा.
७४
जक्कवब्बे जक्कमब्बे
विख्यात जैन | श्रवण बेलगोल शिलालेख सेनापति
प.३६६ पुणिसमय्य की भार्या थी।
कृष्णराजपेठ के | होसकोटे स्थान में एक मंदिर निर्मित
करवाया। सीता, रूक्मिणी से तुलना की
जा सकती है।
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