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आठवीं से पंद्रहवीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ
क्र.
सन्
श्राविका नाम |
संबंध
अवदान
प्रेरक/प्रतिष्ठापक
आचार्य/गच्छ
संदर्भ ग्रंथ
११३३
। विष्णुवर्द्धन की
जै. बि. पा. 1.
शांतले शांतलदेवी
रानी
हल्लिगॉव हालेबीड़ के पास में पार्श्वनाथ की
बस्ति बनाई
मैलम
वरंगल, आंध्र-प्रदेश
मंत्री बेता की पत्नि मैलम थी
बूचब्बे
मालब्बेय के पुत्र | बामि-सेट्टी की पत्नि
अन्मकोण्ड पहाड़ी पर | द. भा. ज.ध. | ७ एक जिनमंदिर बनवाया था, मंदिर की व्यवस्था के लिए भूमि का दान
भी किया था।
बूचब्बे का स्मारक बना| जै. शि. सं. भा. ३ | २६७ |
हुआ है।
६८ | १६६४
अन्नलदेवी | केल्हन की माता थी।
सांडेराव का शिलालेख
जै. इं. आं.
४०
महावीर मंदिर के लिए
दान दिया था।
६६ |
झारोली शिलोलख
जै.इं.आं
| जैन मंदिर के लिए बगीचे का दान किया
|७० | पार | बाचलदेवी
गंगवाड़ी के राजा भुजबलगंग की दूसरी पत्नि थी। मूलसंघ देशीगण की गहस्य
शिष्या थी।
बन्नी केरे में एक सुंदर | १. जै. शि. सं. भा. Real जिनालय का निर्माण | २२. जै. शि. सं. | कराया था। अपने पति भा.३ को पात्र जगदल्ले की उपाधि दी थी।
|
| 4
| देमति, देमवति. | राजसम्मानित चामुण्ड | गुरू शुभचंद्र सिद्धांतदेव | बहन लक्कले या देमियक्क | नाम के वणिक् की थे। लक्ष्मीमति ने देमति के | जै. सि. भा. सन् भार्या थी नगले की
स्मरणार्थ लेख नं ४६ १२६ | १६४६ पुत्री थी भाई
लिखवाया था। धार्मिक बूचिराज था।
कार्यों में देमति का योगदान उल्लेखनीय है।
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