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जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास
५.३ ग्यारहवीं से तेरहवीं शती की जैन श्राविकाएँ :
गुजरात का शासन जयसिंह सिद्धराज, सम्राट् कुमारपाल, अजयपाल, भीमदेव आदि के हाथों में रहा । ई. सन् की ग्यारहवीं शती में गुजरात के प्रतापी सोलंकी नरेश भीमदेव प्रथम के राज्यकाल में उनके स्वामीभक्त अमात्य थे विमलशाह । वे धनी वणिक् प्रचण्ड सेनानायक, धर्मानुरागी, उदार और दानी थे। विपुल द्रव्य व्यय करके ई. १०३२ में आबूपर्वत पर विश्वविख्यात कलाधाम भगवान् आदिनाथ का मंदिर उन्होंने बनवाया । कर्ण की रानी और जयसिंह की जननी राजमाता मीनलदेवी, कुमारपाल की रानी भोपालादेवी, पुत्री लीलू आदि जैन धर्म की उपासिकाएँ थी। ई. सन् की ग्यारहवीं शताब्दी में गंगरस सत्यवाक्य नामक श्रद्धानिष्ठ जिनोपासक राजा की रानी बाचलदेवी ने गंगवाड़ी के बन्निकेरे नगर में भव्य जिनालय का निर्माण करवाया । चालुक्यराज सोमेश्वर की पटरानी माललदेवी जिनधर्मी थी। मारसिंह देव द्वितीय की छोटी बहन सुम्मियब्बरसि तथा उसकी बड़ी बहन कनकियब्बरसि जिनमंदिर बनवाये तथा उनकी व्यवस्था के लिए भूमि का दान भी दिया था । ग्यारहवीं शताब्दी में ही राजेंद्र कोंगालव की माता पोचब्बरसि, कदम्बशासक कीर्तिदेव की बड़ी रानी माललदेवी ने जिन मंदिर का निर्माण करवाया था। शांतरवंश की महिला चट्टलदवी ने शांतरों की राजधानी पोंबुच्चपुर में जिनालयों का निर्माण करवाया। अनेक मंदिर, बसदियाँ, तालाब, स्नानगह तथा गुफाएँ बनवायीं तथा आहार, औषध, शिक्षा एवं आवास की व्यवस्था की थी।
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ई. सन् ११७५ में मल्लाम्बिका श्राविका ने कवि आचाण्ण द्वारा रचित पार्श्वनाथ पुराण लिखवाया। ई. सन् १२०६ में श्राविका गंगादेवी ने कवि जन्न रचित यशोधरा चरित्र की प्रतिलिपि करवाई । १३वीं शती में कामांबिका ने कुमुदेंदु रामायण, महादेवी ने पुष्पदंतपुराण, तथा १४वीं शती में अकम्बि ने जिनेंद्र कल्याणाभ्युदय नामक ग्रंथ की रचना करवाई । ग्यारहवीं शताब्दी के दो वीर भ्राता थे नेढ़ और विमल । विमल अणहिलपुर पाटन के राज्य सिंहासनाधिपति गुर्जर देश के चौलुक्य महाराज भीमदेव का मंत्री था । वह अत्यंत कार्यदक्ष, शूरवीर तथा उत्साही था, अतः महाराज भीमदेव ने उसको सेनापति नियत किया । भीमदेव ने अचलगढ़ को अपना निवास स्थान बनाया चन्द्रावती में धर्मघोष सूरि का चातुर्मास कराया और इनके उपदेश से आबू पर्वत पर विमल वसहि नामक मंदिर बनवाया, जो अत्यंत कलापूर्ण था ।
गुप्त सम्राटों के समय में वर्तमान विधयप्रदेश (बुन्देलखण्ड) उनके साम्राज्य का एक प्रसिद्ध प्रांत था । देवगढ़, खजुराहो आदि उसके प्रमुख नगर थे। खजुराहों में श्रेष्ठी बीबतसाह और उनकी पत्नी सेठानी पद्मावती ने ई. १०८५ में खजुराहो में एक जिन प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। उक्त मंदिर में भी इनका सहयोग रहा है, यह मंदिर भी अत्यंत कलापूर्ण है। इसी बुंदेलखण्ड में दानी भैंसाशाह (पाड़ाशाह) १२वीं. - १३वीं शताब्दी में हुए थे।" ई. सन् ११८८ के दो अभिलेखों से ज्ञात होता है कि श्राविका लहिया की पुत्री, देवचंद्र की
पुत्रवधू, एवं यशोधर की पत्नी ने अपना भवन महावीर मंदिर के रथ को रखने हेतु दान दिया था। संवत् १०८८ में अभयदेवसूरि नौ अंगों पर टीकाएँ लिखी तथा डोसी, पगारिया, मेड़तवाल नामक गोत्रों की स्थापना की। १२वीं शती के मल्लधारी हेमचंद्राचार्य तथा श्री जिनवल्लभसूरी ने लोगों को जैनधर्म की दीक्षा दी तथा गोत्रों की स्थापना की । धंधुका निवासी हुंबड़ गोत्रीय संस्कारी माता वाहड़देवी के पुत्र जिनदत्तसूरी का जन्म वि. सं. ११३२ में हुआ था। आपने ७० गोत्रों की स्थापना की थी। आपकी स्मति में देश भर में दादावाड़ी बनी हुई है। आप दादाजी के नाम से प्रसिद्ध हुए थे । संवत् ११६७ में माता देल्हणदेवी के सुपुत्र जिनचंद्रसूरि हुए थे । श्राविका जयंतश्री की कुक्षी से जिनकुशलसूरि का जन्म हुआ था। आप भी दादा जी के नाम से जैन समाज में विख्यात् हुए है। " ई. सन् की बारहवीं शताब्दी में गंगवाड़ी के राजा भुजबल गंग की रानी महादेवी एवं बाचलदेवी दोनों ही जैनमत की संरक्षिका थी। बाचलदेवी ने बन्निकेरे में सुंदर जिनालय का निर्माण कराया था। राजा तैल की पुत्री तथा विक्रमादित्य शांतर की बड़ी बहन चम्पादेवी थी। इसकी पुत्री बाचलदेवी दूसरी अतिमब्बे थी। दोनों माँ - पुत्री चतुर्विध संघ भक्ति में आस्थावान् थी। जैन सेनापति गंगराज की पत्नी लक्ष्मीमती अपने युग की अत्यंत प्रभावशालिनी नारी थी। गंगराज के बड़े भाई की पत्नी अक्कणब्बे जैन धर्म के प्रति दढ़ श्रद्धा थी। सेनापति सूर्यदण्डनायक की पत्नी दावणगेरे की भक्ति भी प्रसिद्ध है । १२
बारहवीं - तेरहवीं शताब्दी में सिद्धराज जयसिंह का सामंत था चण्डप्रसाद का पुत्र सोम । सोम का पुत्र था अश्वराज तथा अश्वराज के तीन पुत्र हुए थे मालदेव वस्तुपाल और तेजपाल । वस्तुपाल ने यात्रा संघ निकाला था। इनकी दो पत्नियाँ थी । ललितादेवी और बेजलदेवी । ललितादेवी से शूरवीर पुत्र जयन्तसिंह का जन्म हुआ था । महामात्य तेजपाल की भी दो पत्नियाँ थी,
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