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________________ 184 ३.७.८३ स्कंदश्री : पुरिमताल नगर में विजय नामक चोर सेनापति जो बड़ा ही क्रूर था, उसकी निर्दोष सर्वांगसुंदरी स्कंदश्री नाम की भार्या थी । उनके अभग्नसेन नामक पुत्र था । १७० ३. ७. ८४ श्रीनाम : वाणिज्यग्राम में मित्र नाम का राजा था, उसकी पटरानी का नाम श्रीनाम था । १७१ ऐतिहासिक काल की जैन श्राविकाएँ ३. ७.८५ सुभद्रा : वाणिज्यग्राम में विजय मित्र नामक धनी सार्थवाह की पत्नी का नाम सुभद्रा था। सुभद्रा का एक पुत्र था उज्झितक जो सर्वांग सुंदर और रूपवान बालक था । १७२ ३.७.८६ देवदत्ता : रोहीतक नगर के दत्त सेठ की सेठानी कृष्णा श्री के उदर से पैदा हुई। वह एक बार क्रीड़ा कर रही थी तब राजा ने उसे देखा था। उस कन्या की युवराज पुष्यनंदी के लिए दत्त सेठ से याचना की। पुण्यनंदी से उसका विवाह हुआ । यथा समय पुष्यनन्दी राजा बना। राज माता श्रीदेवी की भक्ति में राजकुमार संलग्न रहता था । देवदत्ता को यह सहन नहीं हुआ । एक बार जब श्रीदेवी सूखपूर्वक सो रही थी, तब देवदत्ता ने तपे हुए लोहदण्ड को श्रीदेवी के गुह्य स्थान में प्रविष्ट कर दिया। फलस्वरूप वह महान् शब्द से आक्रंदन कर मर गई । पुष्यनंदी ने क्रोधपूर्वक पकड़वाकर उसका वध करने की आज्ञा दी । पाप के फल को भोगती हुई वह दुरवस्था को प्राप्त हुई । ७३ ३.७.८७ उत्पला : हस्तिनापुर में भीम नामक कूटग्राह रहता था, उसकी पत्नी का नाम उत्पला था । उत्पला के गर्भ में गर्भस्थ जीव के प्रभाव से पशुओं का मांस और रूधिर पीने की इच्छा हुई, भीम ने इच्छा पूर्ण की उसने पुत्र को जन्म दिया नाम रखा गया 'गोत्रास' कुमार क्योंकि जन्म लेते ही बालक ने कर्णकटु और चीत्कारपूर्ण भीषण शब्द किया था जिससे गौ आदि नागरिक पशु भयभीत और उद्विग्न होकर चारों तरफ भागने लगे थे । १७४ ३. ७. ८८ मगादेवी : मगा ग्राम नामक प्रसिद्ध नगर था जहाँ विजय क्षत्रिय राजा राज्य करता था। मगादेवी का आत्मज था मगापुत्र, जो कि जन्मकाल से ही अंधा, गूंगा, बहरा, पंगु, हुण्ड और वातरोगी था । पुत्र वात्सल्यवश माता मगादेवी गुप्त भूमिगह में गुप्त रूप से आहार पानी आदि के द्वारा उस मगापुत्र बालक की सेवा करती हुई जीवन व्यतीत कर रही थी ।१ पूर्वभव में कपट रूप व्यापार को अपना कर्तव्य बनाने से इस प्रकार का अशुभ कर्म परिणाम सामने आया। माता मगादेवी ने बड़ी धैर्यता के परिस्थिति का सामना किया । १७५ ३.७.८६ गंगादत्ता : पाटलीखंड नगर में सागरदत्त नाम का धनाढ्य सार्थवाह रहता था। उसकी गंगादत्ता भार्या से उम्बरदत्त नामक पुत्र पैदा हुआ । १७६ ३.७.६० समुद्रदत्ता : शौरिकपुर में समुद्रदत्ता नामक मच्छीमार रहता था, वह अधर्मी और अप्रसन्न था । उसकी समुद्रदत्ता नामक भार्या थी, उसके आत्मज का नाम था शौरिकदत्ता । १७७ ३.७.६१ बंधुश्री देवी : मथुरा नगरी में श्रीदाम राजा की बंधुश्री देवी की कुक्षी से नंदिषेण नामक कुमार पैदा हुआ था । ३.७.६२ वसुदत्ता : कौशांबी नगरी में समस्त वेदों का ज्ञाता विद्वान सोमदत्त नाम का पुरोहित रहता था। उसकी पत्नी का नाम वसुदत्ता था, तथा पुत्र का नाम था बहस्पतिदत्त । १७६ ३.७.६३ भद्रा : साहंजनी नगरी में सुभद्र नामक प्रतिष्ठित सार्थवाह रहता था । उनकी निर्दोष पचेंद्रिय शरीर वाली भद्रा नाम की पत्नी थी, उनके पुत्र का नाम शकट था। ३.७.६४ अजु : धनदेव सार्थवाह की पत्नी से अजू नामक लावण्यमयी कन्या पैदा हुई। वह बुभुक्षित, निर्मांस, कष्टमय, करूणाजनक तथा दीनतापूर्ण वचनों से विलाप करती थी। गौतम ने उसे मार्ग में देखा। भगवान् ने पूर्वभव के अशुभ कर्म बंधन के परिणाम हैं, ऐसा प्रकाश डाला। १८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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